रणदीप हुड्डा की फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ ओपनिंग पर ही फुस्स हो गई थी. फिल्म ने पहले दिन यानी ओपनिंग पर महज 1.15 करोड़ का कलेक्शन कर पाई थी. स्वातंत्र्य वीर सावरकर हिंदुत्व विचारक और देशद्रोही विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर बनी है. ऐतिहासिक तथ्य ये हैं कि सावरकर वीर नहीं एक कायर था जिसने अंग्रेजों को अनेक माफीनामे लिखे थे. सावरकर को फासिज्म से प्रेरित हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा का जनक माना जाता है. इतिहासकार बताते हैं कि हिंदू राष्ट्रवादी’ शब्द की उत्पत्ति ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक ऐतिहासिक संदर्भ में हुई. यह स्वतंत्रता संग्राम मुख्य रूप से एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष भारत के लिए कांग्रेस के नेतृत्व में लड़ा गया था. ‘मुस्लिम राष्ट्रवादियों’ ने मुस्लिम लीग के बैनर तले और ‘हिंदू राष्ट्रवादियों’ ने ‘हिंदू महासभा’ और ‘आरएसएस’ के बैनर तले इस स्वतंत्रता संग्राम का यह कहकर विरोध किया कि हिंदू और मुस्लिम दो पृथक राष्ट्र हैं. स्वतंत्रता संग्राम को विफल करने के लिए इन हिंदू और मुस्लिम राष्ट्रवादियों ने अपने औपनिवेशिक आकाओं से हाथ मिला लिया ताकि वे अपनी पसंद के धार्मिक राज्य ‘हिंदुस्थान’ या ‘हिंदू राष्ट्र’ और पाकिस्तान या इस्लामी राष्ट्र हासिल कर सकें.’
जस्टिस काटजू के अनुसार -“दरअसल, सावरकर केवल 1910 तक राष्ट्रवादी रहे. ये वो समय था जब वे गिरफ्तार किए गए थे और उन्हें उम्र कैद की सज़ा हुई. जेल में करीब दस साल गुजारने के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके सामने सहयोगी बन जाने का प्रस्ताव रखा जिसे सावरकर ने स्वीकार कर लिया और उनके एजेंट बन गये. जेल से बाहर आने के बाद सावरकर हिंदू सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम करने लगे और एक ब्रिटिश एजेंट बन गए. वह ब्रिटिश नीति ‘बांटो और राज करो’ को आगे बढ़ाने का काम करते थे”
जब कांग्रेस ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तो सावरकर ने उसकी आलोचना की. उन्होंने हिंदुओं से ब्रिटिश सरकार की अवज्ञा न करने को कहा. साथ ही उन्होंने हिंदुओं से कहा कि वे ब्रिटिश सेना में भर्ती हों और युद्ध की कला सीखें. सावरकर ने जेल में कई माफीनामे लिखे जो संरक्षित हैं जिसमे उसने लिखा – ‘यदि मुझे छोड़ दिया जाए तो मैं भारत के स्वतंत्रता संग्राम से ख़ुद को अलग कर लूंगा और ब्रिट्रिश सरकार के प्रति अपनी वफ़ादारी निभाउंगा.’ अंडमान जेल से छूटने के बाद उन्होंने यह वादा निभाया भी और कभी किसी क्रांतिकारी गतिविधि में न शामिल हुए, न पकड़े गए.
सावरकर ने 1913 में एक याचिका दाख़िल की जिसमें उन्होंने अपने साथ हो रहे तमाम सलूक का ज़िक्र किया और अंत में लिखा, ‘हुजूर, मैं आपको फिर से याद दिलाना चाहता हूं कि आप दयालुता दिखाते हुए सज़ा माफ़ी की मेरी 1911 में भेजी गई याचिका पर पुनर्विचार करें और इसे भारत सरकार को फॉरवर्ड करने की अनुशंसा करें. भारतीय राजनीति के ताज़ा घटनाक्रमों और सबको साथ लेकर चलने की सरकार की नीतियों ने संविधानवादी रास्ते को एक बार फिर खोल दिया है. अब भारत और मानवता की भलाई चाहने वाला कोई भी व्यक्ति, अंधा होकर उन कांटों से भरी राहों पर नहीं चलेगा, जैसा कि 1906-07 की नाउम्मीदी और उत्तेजना से भरे वातावरण ने हमें शांति और तरक्की के रास्ते से भटका दिया था.’
अपनी याचिका में सावरकर लिखता है , ‘अगर सरकार अपनी असीम भलमनसाहत और दयालुता में मुझे रिहा करती है, मैं आपको यक़ीन दिलाता हूं कि मैं संविधानवादी विकास का सबसे कट्टर समर्थक रहूंगा और अंग्रेज़ी सरकार के प्रति वफ़ादार रहूंगा, जो कि विकास की सबसे पहली शर्त है. जब तक हम जेल में हैं, तब तक महामहिम के सैकड़ों-हजारें वफ़ादार प्रजा के घरों में असली हर्ष और सुख नहीं आ सकता, क्योंकि ख़ून के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता. अगर हमें रिहा कर दिया जाता है, तो लोग ख़ुशी और कृतज्ञता के साथ सरकार के पक्ष में, जो सज़ा देने और बदला लेने से ज़्यादा माफ़ करना और सुधारना जानती है, नारे लगाएंगे.’
फिल्म इस व्यक्ति के जीवन पर बनी है जिसे आरएसएस-भाजपा स्वतन्त्रता सेनानी बनाना चाहते हैं और राष्ट्रीय व्यक्तित्व के रूप में महात्मा गाँधी के समकक्ष खड़ा करना चाहते हैं. सावरकर वीर नहीं एक कायर और ठग था यह तमाम दस्तावेजों से सिद्ध है. प्रोपगेंडा फिल्म द्वारा सत्य को नहीं झुठलाया जा सकता है. “स्वातंत्र्य वीर सावरकर” एक फासिस्ट प्रोपगेंडा फिल्म है जिसमे कोई सच नहीं है. भारत की जनता ने फिल्म को उसी तरह नकार दिया जिस तरह जीवित रहते सावरकर को नकार दिया था. खैर, फिल्म फ्लॉप हो चुकी है और अपनी लागत भी नहीं निकाल पाई है. फिल्म 20 करोड़ के छोटे बजट में बनी थी, अबतक इसकी कमाई 17 करोड़ किसी तरह हो पाई है. वो भी तब जब घृणा-विद्वेषी और कमोवेश क्रिमिनल सोच रखने वाले मोदी भक्तों ने इसे खूब देखा.
रणदीप हुडा इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक हैं, उन्होंने ही सावरकर की भूमिका निभाई है. हुडा की जन्म कुंडली नीचे दी गई है. इसमें समय 13:15 मिनट रोहतक लिया गया है. वर्तमान 2014 से रणदीप हुडा शनि की महादशा में चल रहे हैं जिसमे शुक्र अन्तर्दशा चली थी जो फिल्म रिलीज के बाद खत्म हुई है. फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ शनि-शुक्र दशा में बनी और रिलीज हुई. उनकी बेस्ट फ़िल्में शनि दशा से पहले गुरु बृहस्पति महादशा में रिलीज हुई थी, जिसमे उनकी एक्टर के रूप में पहचान बनी थी. शनि दशा के प्रारम्भ होने से पूर्व उनकी फिल्म “हाईवे” आई थी जो काफी पसंद की गई थी. वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि-शुक्र या शुक्र-शनि दशा ज्यादातर मामले में बहुत बुरी जाती है. यहाँ तक कहा गया है कि यदि कुंडली में शुक्र और शनि दोनों ही बलवान हों तो व्यक्ति कंगाल हो जाता है. हुडा की कुंडली में शुक्र का राजनैतिक सिग्नीफिकेशन होने के कारण कंगना रनौत की तरह इन्होने राजनीतिक विषय पर फिल्म बनाई और उससे हिंदुत्व से कुछ फायदा लेने की सोचा, जबकि दोनों ग्रह नवांश और दशमांश कुंडली में एकदूसरे से अशुभ स्थान में स्थित हैं. हुडा का करियर डगमगा चूका था और उन्हें कोई अच्छी फिल्म नहीं मिल रही थी, ऐसे में सोचा बहती गंगा में हाथ धो लें. फिल्म टैक्स फ्री हो जाएगी और मोदी प्रसन्न हो जायेगा तो लाभ मिल जायेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि दशा फेवरेल नहीं थी. कंगना रनौत ने हिंदुत्व के चक्कर में कमोवेश अपना करियर खत्म कर लिया और चुनाव लड़ रही है. इस फिल्म में अपना पैसा और अपना राजनीति पक्ष रखकर एक्टर के रूप में रणदीप हुडा ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है.


