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भारतीय ज्योतिष में संसारिकता के बावत पाप और क्रूर ग्रहों की महत्ता शुभ ग्रहों से ज्यादा है. यह संसार अविद्या का प्रसार है और पाप पूर्ण है. मनुष्य का मर्त्य लोक में जन्म पाप से ही होता है, ऐसा सनातन धर्म के ग्रन्थों में कहा गया है. ईसाई धर्म में सब कुछ पापमय है. बाईबिल का रोमन अध्याय कहता है कि सबने पाप किया है और इसलिए ईश्वर से वंचित हैं. जो कोई भी दावा करता है कि वह पापविरहित है वह धोके में है. “For all have sinned and fall short of the glory of God. If we claim to be without sin, we deceive ourselves and the truth is not in us” संसार के सभी कष्ट और दुःख मनुष्य के पापों का परिणाम है. हिन्दू धर्म पाप से उत्पन्न इसी दुःख और कष्ट की निवृत्ति के लिए सभी उपाय बताता है. पतंजली योग सूत्र में कहा गया है -“हेयं दुःखमनागतम्”. जो दुःख मनुष्य झेल रहा है उससे निवृत होना है, जिसका विपाक होगा, और जो नहीं आया है, आने वाला है, उसे रोकना है. आने वाला दुःख ही हटाने योग्य है, वर्तमान या भूतकाल का दुःख नहीं क्योंकि यह भोग से निवृत्त होगा. पतंजली ने इसके लिए आठ साधन बताये हैं – म (संयम), नियम (पालन), आसन (योग मुद्रा), प्राणायाम (प्राण पर नियंत्रण), प्रत्याहार (इंद्रियों को वापस अपने भीतर समाहित करना), धारणा ( मन की एकाग्रता), ध्यान (ध्यान) और समाधि . सनातन धर्म योग के इतर अन्य साधन ज्ञान और भक्ति भी बताता है.

धर्म के सभी उपाय पाप से मुक्ति और दुःख निवृत्ति के लिए ही हैं. लेकिन ज्योतिष संसारिकता के बावत नियंत्रित पाप और क्रूरता को महत्वपूर्ण मानता है क्योंकि संसार में तो सभी पापी हैं और सबमें क्रूरता है. ऐसे में कोई बहुत सभ्य-शांत और सौम्य व्यक्ति कैसे सफलता अर्जित कर सकता है? जिस व्यक्ति में सिर्फ शुभत्व है, वह महात्मा तो बन सकता है, गुरु बन सकता है लेकिन वह जीवन में सफल नहीं हो सकता है क्योंकि उसके इदगिर्द पाप-पुरुष हैं, क्रूर आत्माएं हैं. इसके मद्देनजर भारतीय ज्योतिष में पाप और क्रूर ग्रह को संसारिकता के बावत सबसे महत्वपूर्ण माना गया है. काल पुरुष की कुंडली में भी कर्म क्षेत्र का अधिपति पाप और क्रूर ग्रह शनि है. उदाहरण के लिए राजनीति में सौम्य-सीधा व्यक्ति किसी काम का नहीं होता क्योंकि राजनीतिक क्षेत्र में सबसे क्रूर और पापमय व्यक्ति कार्य करते हैं. कांग्रेस पार्टी एक सौम्य-लिबरल लोगों की पार्टी रही है, इनकी संस्कृति भी सभ्य है. इनको क्रूर-पापी और महान अधर्मी मोदी ने मटियामेट कर दिया था. नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी में छंटे हुए पापियों और क्रूर मनुष्यों को भर्ती किया जिनमे सिर्फ पाप और अधर्म ही है (Coded all evil-paap elements i.e. criminals, thugs, racketeers, rapists, adharmi pujari and babas etc. in his system of exploitation). उसका नतीजा यह हुआ कि सौम्य प्रकृति की पार्टियाँ और नेता उसकी क्रूरता के समक्ष लाचार हो गये. उसने अपनी क्रूरता और पापत्व में बेतहाशा वृद्धि की और समाज को क्रिमिनलाईज कर दिया. समाज का एक बड़ा तबका पाप और क्रूरता की पराकाष्ठा पर पहुंच गया. इस क्रूरता और पापत्व की वृद्धि से समस्त सरकारी सिस्टम ध्वस्त हो गया और व्यापक पैमाने पर करप्शन और लूटपाट शुरू हो गई. यह लूटपाट ऐतिहासिक हो गई और इस हद तक गई कि क्या कोई गुंडा फिरौती और वसूली करेगा, पापाचारी और क्रूर पीएम स्वयं यह काम करने लगा. उसका पापत्व इस हद तक बढ़ गया कि वह आम जनता की जान का दुश्मन बन गया. उसने दवा कम्पनियों से सैकड़ों करोड़ की वसूली की और बदलने में ड्रग टेस्ट में फेल दवाओं को जनता को बेचने दिया. शास्त्रों में असुर की परिभाषा दी गई है- असुर =असु मतलब प्राण, र- मतलब उसको नष्ट करने वाला, उसका नाश करने वाला. असु मतलब प्राण, जीवन का दुश्मन मोदी ने इसका हर विधि नाश किया. भारतीयों की सुख-शांति, उनके जीवन को नीचे गिराने वाला, घृणा विद्वेष और हिंसा में झोंकने वाला यह आसुरी सम्पत सम्पन्न मनुष्य महाक्रूर और पापाचारी है. पापाचार और क्रूरता जब उत्कर्ष को प्राप्त करता है तो यही असुरत्व है. दवा कम्पनियों से सैकड़ों करोड़ की वसूली करने वाला असुर ही हो सकता है, मनुष्य नहीं हो सकता है.

भारतीय ज्योतिष में दशम भाव, तृतीय पराक्रम भाव, छठवें शत्रु भाव और ग्यारहवें में क्रूर ग्रह ही शुभ माने गये हैं या इन भावो के स्वामी क्रूर ग्रह हों तो शुभ कहे गये हैं. वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर का मानना है कि केद्र और प्रमुख रूप से दशम राज्य भाव में शुभ ग्रह प्रभावी नहीं होता है. सौम्य ग्रह (चन्द्र , बुध , गुरु , शुक्र ) यदि केंद्र अर्थात चतुर्थ, सप्तम, दशम के स्वामी हों तो ये शुभ फल प्रदान नहीं करते (न दिशन्ति शुभं नृणाम सौम्या: केन्द्राधिपा यदि।) राज्यभाव में क्रूर ग्रह ही राजयोगकारक होता है. दशम भाव में क्रूर मंगल दिग्बली होता, सूर्य दिग्बली और शक्तिशाली होता है, राहु राजयोग देने वाला होता है. दशम भाव का स्वामी यदि शुभ ग्रह है तो वह शुभ तभी है जब वह त्रिकोण का स्वामी है. यदि पाप-क्रूर ग्रह राज्य भाव का स्वामी है या वहां स्थित है तो वह प्रभावशाली होगा लेकिन उसमे शुभत्व तभी होगा और यदि वह त्रिकोण का स्वामी भी है. दशम भाव में पाप-क्रूर ग्रह को सिर्फ प्रभावशाली कहा गया है, शुभ नहीं कहा गया है. यदि वह त्रिकोण का स्वामी नहीं है तो उसमे शुभता नहीं होगी पापत्व ज्यादा होगा, उससे न तो उसका कल्याण होगा और न लोककल्याण होगा. आत्म कल्याण और लोककल्याण ज्योतिष के भी केंद्र में हैं. कर्क लग्न में मंगल दशमेश है और पंचमेश भी है इसलिए यह दशम में स्थित होकर क्रूर होकर भी शुभ ग्रह होगा. यह दुश्मन का दमन करने वाला, पापियों का नाश करने वाला होगा और लोक का कल्याण करेगा.

भारतीय ज्योतिष में 3रे, 6वें और लाभ भाव 11वें में भी अशुभ-क्रूर-पाप ग्रह को ही शुभ माना गया है. “केन्द्रेशत्वेन पापानां या प्रोक्ता शुभकारिता। सा त्रिकोणाधिपत्येऽपि न केंद्रेशत्वमात्रत:।।” पराशर के अनुसार केंद्र और त्रिषडाय 3,6,1 में क्रूर अशुभ ग्रह शुभ होते हैं और शुभ ग्रह केंद्र के स्वामी होकर अशुभ होते ही हैं एवं त्रिषडाय में भी उनके शुभ करने की क्षमता क्रूर ग्रह से कम ही होती है. ग्रहों के शुभत्व और पापत्व या अशुभत्व के अनेक आयाम हैं, इनके स्वरूप को विभिन्न स्तरों पर देख कर निर्णय करना चाहिये. यदि पराक्रम भाव को देखें तो तार्किकत: पराक्रम के लिए साधु ग्रह बृहस्पति शुभ नहीं हो सकता. बृहस्पति की पत्नी तारा को चन्द्रमा ले गया तो उसे नहीं छुड़ा पाए थे. बृहस्पति ज्ञान, धर्म, विद्या, मुक्ति इत्यादि का ग्रह है. मंगल में पराक्रम है इसलिए वह तीसरे हॉउस का कारक है. इस स्थान पर क्रूर ग्रह ही पराक्रम दिखायेगा. मान लो दो व्यक्ति कि कुंडली में एक में तीसरे भाव का स्वामी बृहस्पति है और दूसरे में मंगल है और दोनों में युद्ध हो तो जिसकी कुण्डली में मंगल है वह ज्यादा पराक्रमी होकर उसपर प्रभावी हो सकता है. उसी प्रकार 6वें दुश्मन के हॉउस में शुभ ग्रह प्रभावशाली नहीं होते. इस प्रकार देखें तो सांसारिक विषयों में पाप और क्रूर ग्रह ही प्रभावशाली बताये गये हैं. गौरतलब है कि जब पराशर राज्य भाव की बात करते हैं और कहते हैं क्रूर-पाप ग्रह वहां शुभ होता है तो वहां एक कंडीशन लगा देते हैं कि वह शुभ तभी है जब वह शुभ भावों का स्वामी हो अर्थात दो धर्म-विद्या-नैतिकता के भावो से जुड़ा हुआ हो, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होगा तो राज्य कर्म में सिर्फ पापाचार, क्रूरता और अधर्म फ़ैल जायेगा और लोक का विनाश हो जाएगा. यह बात ध्यान में रखनी चाहिए.