हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि पितरों की पूजा-अर्चना की तिथि मानी गई है. वेदों में यद्यपि कि “न जायते म्रियते वा ” कह कर यह स्थापित किया गया है कि आत्मा का न जन्म होता है न मृत्यु, लेकिन जीव का कर्म प्रवाह के अनुसार जन्म-मरण होता है. अमावस्या पितरो की तिथि है जो पूर्व में जन्मे थे और जो हमारे जन्म के कारण थे इसलिए उनके प्रति सम्मान प्रदर्शन करने के लिए यह तिथि है. हर महीने की अमावस्या राशि और नक्षत्र से सम्बन्धित होने के कारण महत्वपूर्ण है.
इस तिथि पर पवित्र नदी में स्नान, दान और जप-तप करने का विधान है. धार्मिक मान्यता के अनुसार,इस दिन पूजा करने से जीवन में मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और पितृ प्रसन्न होते हैं. साथ ही पितृ दोष से छुटकारा मिलता है. अमावस्या तिथि के दिन पक्षियों को दाना डालने से, कौओं को पिंड देने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने से भी पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. ऋग्वेद में कहा गया है –
सं ते पयांसि समु यन्तु वाजाः सं वृष्ण्यान्यभिमातिषाहः ।
आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवांस्युत्तमानि धिष्व ॥
अमावस्या पर पितरो का पूजन करने वाले और चन्द्र को अर्घ्य देने वाले दुश्मनों पर विजय प्राप्त करते हैं. अमावस्या का पूजन के लिए वैदिक विधि है जिसमें वैदिक ऋचाओं से तीन अर्घ्य देने का प्रावधान है.
फाल्गुन अमावस्या मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन अमावस्या 9 मार्च को शाम 6 बजकर 17 मिनट से शुरू हो रही है और इसका समापन अगले दिन यानी 10 मार्च को दोपहर 2 बजकर 29 मिनट पर होगा. उदया तिथि में फाल्गुन अमावस्या 10 मार्च को पड़ रही. इस दिन स्नान और दान करने का मुहूर्त सुबह 4 बजकर 49 मिनट से लेकर सुबह 5 बजकर 58 मिनट तक रहेगा. वहीं अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 8 मिनट से लेकर दोपहर 1 बजकर 55 मिनट तक रहेगा. पितरो का पूजन दोपहर के उपरांत ही करने का शास्त्रीय प्रावधान है. अमावस्या तिथि में पूजन का बहुत महत्व माना गया है. इस दिन काली, भैरव का पूजन अत्यंत लाभप्रद होता है.

