ज्योतिष के अनुसार ज्येष्ठा नक्षत्र के अंत की 4 घटी ( 1 घटी 24 मिनट की होती है, 2.5 घटी का एक घंटा होता है ) दोनों मिलाकर 8 घटी को अभुक्त मूल कहा जाता है. पौराणिक नारद के मत में ज्येष्ठा के अंत की एक घटी और मूल के अंत को दो घटी अभुक्त मूल होता है. वशिष्ठ ज्येष्ठा और मूल के अन्त्य की आधी आधी घटी को अभुक्त मूल मानते हैं. वास्तव में इन नक्षत्रों अंत और प्रारम्भ के सम्पूर्ण पाद ही अभुक्त मूल के अंतर्गत है, जबकि अनेक ज्योतिष के महारथियों ने इन दो नक्षत्रो के फल का वर्णन करते समय सम्पूर्ण नक्षत्र को ही खराब माना है.
कुछ ज्योतिष विद्वानों के अनुसार ज्येष्ठा के अंत की आठ घटी और मूल नक्षत्र के प्रारम्भ की 5 घटी अभुक्त मूल है. इस अभुक्त मूल में जन्म लेने वाले बालक या बालिका को त्याग देना चाहिए (या कोई सन्तानहीन व्यक्ति ले ले तो उसे दे देना चाहिए.) इन दो नक्षत्रों के आलावा भी अश्लेषा और मघा नक्षत्र की संधि की कुछ घटियाँ तथा रेवती-अश्विनी की कुछ घटियाँ अभुक्त मूल मानी गई हैं. उस घटियों में विकट दोष देखा गया है इसलिए उसका ज्योतिषीय समाधान करने के लिए शास्त्रों में आदेश है.
शात्रों के अनुसार मूल नक्षत्र की प्रारम्भिक 2 घड़ी बहुत दुस्तर होती है, इसके चार चरणों में शुरू के तीन चरण अशुभ फल देने वाले हैं।
आद्ये पिता नाशमुपैति मूले पादे द्वितीये जननी तृतीये धनं
चतुर्थोऽस्य शुभोऽथ शान्त्या सर्वत्र सत्स्यादहिभे विलोमम् ।। जिस जातक का मूल के प्रथम पाद में जन्म हो तो पिता का नाश करता है, दूसरे पाद में जन्म हो तो माता का, तृतीय पाद में धन नाश करता है, चतुर्थ पाद शुभ होता है।
फलित मार्तण्ड में मूल नक्षत्र के चारो पाद का फल निम्लिखित है –
मूलद्यांशे पितृर्नाश: मातुश्चद्वितीयांशके ।
तृतीये धनधान्यस्य नाशस्तुर्ये धनागम:। मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में उत्पन्न बालक पिता का, दूसरे चरण में उत्पन्न माता का, तीसरे में उत्पन्न धनधान्य का और चतुर्थ चरण में उत्पन्न बालक धन का लाभ प्राप्त करता है।
मूल नक्षत्र के विशेष फल के लिए नक्षत्र के भभोग की सम्पूर्ण घड़ियों को 15 भाग में बांटे और उसके एक एक खंड का फल कहे – प्रथम खंड में पिता का, द्वितोय में चाचा का, तीसरे में बहनोई का, चौथे में पितामह का, पांचवें में माता का, छठवें में मौसी का, सातवें में मामा का, आठवें में चाची का, नवम खंड में सबका नाश करता है। दसवें में पशुओं का, ग्यारहवे में नौकर का, बारहवें में स्वयं का तेरहवें में बड़े भाई का, चौदहवें में बहिन का और पन्द्रहवें में नाना का नाश करता है।
वशिष्ठ ने अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती के अन्त्य की और मघा, मूल तथा अश्विनी के आदि की 8 घटियों में पैदा हुई सन्तान को त्यागने के लिए कहा है.

