फाल्गुन अत्यंत शुभ मास कहा गया है इसलिए इसमें पड़ने वाली तिथियाँ विशेष व्रत और पूजा के लिए काफी शुभ हैं. फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि पर गणेश जी की पूजा एवं पंचमी पर शिवजी के नागेश्वर रूप की पूजा करने का महत्व बताया गया है. श्रवण शुक्ल पंचमी के इतर मासिक पंचामियों में भाद्रपद की पंचमी, फाल्गुन पंचमी इत्यादि भी नाग देवता के पूजन के लिए शुभ मानी जाती है. फाल्गुन शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भानु सप्तमी के रूप में मनाया जाता है . इस दिन सूर्य देव की पूजा विष्णु रूप में करने का विशेष महत्व है. भानु सप्तमी 3 मार्च को पड़ रही है. इस मास में पड़ने वाली फुलेरा दूज बहुत सुंदर पर्व है.
फुलेरा दूज और चन्द्र पूजन
फाल्गुन महीने का शुक्ल पक्ष चंद्र देव की आराधना के लिए सबसे अच्छा माना गया है. पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक माना जाता है कि चंद्रमा की उत्पत्ति महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया की संतान के रूप में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को ही हुई थी. इसलिए फाल्गुन को चंद्रमा का जन्म माह माना जाता है. भारतीय ज्योतिष के अनुसार सात ग्रहों के सात दिन होते हैं. चंद्रमा का दिन सोमवार है, चन्द्रमा जल तत्वमय है इसलिए जल तत्व का देवता भी मान्य है. चंद्रमा का जन्म फाल्गुन मास में होने के कारण इस महीने चंद्रमा की उपासना करने का विशेष महत्व है. इसी माह में समारोह पूर्वक चंद्रोदय पर विशेष पूजा की जाती है. शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर चंद्रमा की पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है. इस तिथि में ही फुलेरा दूज का त्यौहार भी मनाया जायेगा.
फुलेरा दूज का मुहूर्त –
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया 12 मार्च को पड़ रही है. इस दिन फुलेरा दूज भी है. फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि की शुरुआत 11 मार्च को सुबह 10 बजकर 44 मिनट से हो रही है. इसका समापन अगले दिन 12 मार्च 2024 को सुबह 07 बजकर 13 मिनट पर होगा. उदया तिथि को देखते हुए फुलेरा दूज 12 मार्च को मनाई जाएगी. फुलेरा दूज के दिन राधा कृष्ण की पूजा का मुहूर्त सुबह 9 बजकर 32 मिनट से दोपहर 2 बजे तक और गोधूलि में शाम 6 बजकर 25 मिनट से 6 बजकर 50 मिनट तक है.
फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की पूजा आराधना फुल से करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. यह पर्व मुख्य रूप से वसंत ऋतु से जुड़ा पर्व है इसलिए इसे वसंतोत्सव के रूप में ही मानना चाहिए. इस दिन वृन्दावन और बरसाने में श्रीकृष्ण और राधा रानी पर फूल बरसाए जाते हैं अर्थात यह एक तरह से फूलों की होली है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने फूलों से होली खेली थी.
चंद्रमा के जन्म की तीन कथाएं –
चन्द्रमा के जन्म की तीन कथाएं प्राप्त होती हैं. पहली कथा के अनुसार जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने का विचार किया तो सबसे पहले अपने मानसिक संकल्प से मानस पुत्रों की रचना की. उनमें से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ- जिनसे दुर्वासा,दत्तात्रेय व सोम तीन पुत्र हुए. दूसरी कथा स्कन्द पुराण में मिलती है जिसके अनुसार जब देवों तथा दैत्यों ने क्षीर सागर का मंथन किया था तो उस में से चौदह रत्न निकले थे. चंद्रमा उन्हीं चौदह रत्नों में से एक है जिसे लोक कल्याण हेतु, उसी मंथन से प्राप्त कालकूट विष को पी जाने वाले भगवान शंकर ने अपने मस्तक पर धारण कर लिया. चन्द्रमा लक्ष्मी जी का सहोदर है क्योंकि दोनों समुद्र मंथन से ही उत्पन्न हुए हैं. चन्द्रमा की उत्पत्ति की तीसरी कथा हरिवंश पुराण में विस्तार से मिलती है. इन कथाओं के अतिरिक्त चन्द्रमा की उत्पत्ति का वैदिक सन्दर्भ ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में भी प्राप्त होता है जिसमे चन्द्रमा को विराट पुरुष के मन से उत्पन्न बताया गया है –
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥
नाभ्या आसीदन्तरिक्ष गुम शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँऽकल्पयन् ॥
ऋग्वेद दशम मंडल के सूक्त १०-१९० में भी चन्द्रमा की उत्पत्ति का जिक्र परमात्मा द्वारा कल्प के प्रारम्भ में करने का जिक्र आया है, यथा –
ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत ।
ततो रात्र्यजायत ततः समुद्रो अर्णवः ॥१॥
समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत ।
अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी ॥२॥
सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।
दिवं च पृथिवीं चान्तरिक्षमथो स्वः ॥३॥

