फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को द्विजप्रिया संकष्टी चतुर्थी कहा गया है. यह संकष्टी चतुर्थी द्विज ब्राह्मणों को अति प्रिय है. चतुर्थी व्रत उत्तर पौराणिक युग में प्रारम्भ हुआ था. द्विजप्रिया संकष्टी चतुर्थी इस बार 28 फरवरी को पड़ रही है. गाणपत्य सम्प्रदाय की यह सबसे महत्वपूर्ण तिथि है. सम्प्रदायिक मान्यता के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत करने से इंसान को सभी प्रकार के दुख और संकट से छुटकारा मिलता है. गणेश विघ्नहर्ता हैं, उनकी उपासना से सभी कार्यों में सफलता हासिल होती है. कलियुग में गणेश जी को अत्यंत सिद्धिप्रद देवता कहा गया है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन गणपति की दूर्वा से विधिवत पूजा करना चाहिए और उनके मूलमन्त्रों का जप करना चाहिए. गणेश जी के तन्त्र भी बहुत प्रभावशाली हैं. दक्षिण भारत में तांत्रिक गणपति की पूजा का प्रचलन बहुत है. संकष्टी चतुर्थी का व्रत नियमानुसार ही संपन्न करना चाहिए, तभी इसका पूरा लाभ मिलता है और यश, धन, वैभव और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
द्विजप्रिया संकष्टी चतुर्थी मुहूर्त –
फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 28 फरवरी को रात 01 बजकर 53 मिनट से होगी और इसके अगले दिन यानी 29 फरवरी को सुबह 04 बजकर 18 मिनट पर तिथि समाप्त होगी. ऐसे में द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत 28 फरवरी, बुधवार के दिन किया जाएगा.
बुधवार के दिन द्विजप्रिया संकष्टी चतुर्थी का पड़ना और भी शुभ हो जाता है. बुधवार को गणेश की पूजा से बुध ग्रह का दोष खत्म होता है. जान लें कि जिस दिन चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र उदय होता है, संकष्टी चतुर्थी का व्रत उसी दिन रखा जाता है. कभी-कभी संकष्टी चतुर्थी व्रत, चतुर्थी तिथि से एक दिन पूर्व अर्थात तृतीया तिथि के दिन से भी प्रारम्भ होता है. सूर्योदय से शुरू होने वाला संकष्टी व्रत चंद्र दर्शन के बाद ही समाप्त होता है.
अष्टविनायकों का इस श्लोक द्वारा स्मरण करने से भी गणपति की कृपा मिलती है –
स्वस्ति श्रीगणनायको गजमुखो मोरेश्वरः सिद्धिदः
बल्लाळस्तु विनायकस्तथ मढे चिन्तामणिस्थेवरे ।
लेण्याद्रौ गिरिजात्मजः सुवरदो विघ्नेश्वरश्चोझरे
ग्रामे रांजणसंस्थितो गणपतिः कुर्यात् सदा मङ्गलम् ॥

