जगतपिता ब्रह्मा कृत यह अद्भुत स्तोत्र आत्मनाथवेदपादस्तुतिः नाम से आत्मनाथ स्तुति मंजरी में प्राप्त होता है. यहाँ शिव को आत्मनाथ सम्बोधन दिया गया है. आत्मा के वही स्वामी है अर्थात पति, यह जीवात्मा उनका ही अंश है. दूसरी तरफ जीवात्मा एक पशु है जिसके स्वामी पशुपति हैं इसलिए आत्मनाथ, दक्षिणामूर्ति के रूप में आत्मनायक और अर्धनारीश्वर के रूप में उन्हें आत्मनायिका कहा गया है. शिव पुराण में उन्हें जगद्धात्री और सखी कहा है. प्रकृति रूप में उन्हें प्रकृतिकल्याणि, प्रकृतिनायिका और प्रकृतिसुन्दरि कहा गया है. ऋषि उपमन्यु ने भी शिव को जगद्धात्री कह कर सम्बोधन किया है.
॥ आत्मनाथवेदपादस्तुति ॥
नित्याय निर्विकल्पाय निर्मलाय महौजसे ।
निराकाराय गुरवे जगतां गुरवे नमः ॥ १॥
नादाय बिन्दुरूपाय कलाकाराय तेजसे ।
सहस्रभुजपादाय सहस्राक्षाय ते नमः ॥ २॥
चिदानन्दाय शुद्धाय महानन्दस्वरूपिणे ।
महादेवादिदेवाय पशूनां पतये नमः ॥ ३॥
अणोरणीयसे तुभ्यं महतश्च महीयसे ।
परात्पराय पुण्याय क्षेत्राणां पतये नमः ॥ ४॥
वेदागमविचिन्त्याय वेधसेऽजिनवाससे ।
बहिर्मुखैरदृश्याय दिशाञ्च पतये नमः ॥ ५॥
स्वेच्छासृष्टाखिलाण्डाय कारणत्रयहेतवे ।
भक्तचित्तनिवासाय सेनानां पतये नमः ॥ ६॥
चन्द्रखण्डावतंसाय चराचरमयाय ते ।
शाश्वतायादिदेवाय वृक्षाणां पतये नमः ॥ ७॥
त्वदाधारमिदं सर्वं त्वदन्तस्समुपस्थितम् ।
त्वमात्मनाथस्सर्वेषां पुष्टानां पतये नमः ॥ ८॥
जगन्मात्रे जगद्धात्रे जगद्धर्त्रे सुतेजसे ।
मत्पित्रे जगतां भर्त्रे ह्यन्नानां पतये नमः ॥ ९॥
शरणं भव सर्वेश त्वमेव शरणं मम ।
पाहि मां पाहि मां नित्यं पाहि मामात्मनायक ! ॥ १०॥
॥ इति आत्मनाथवेदपादस्तुतिः समाप्ता॥

