भगवान शिव अनंत रूपों में स्थिति हैं. उनकी महालिंग रूप में स्थिति है, वे पंचानन शिव रूप में स्थित हैं, वे ही पशुपति हैं और वे ही अष्टमूर्तियों में स्थित हैं. शतपथ ब्राह्मण में जिक्र है कि जब प्राणात्मा का प्राकट्य हुआ तो उसका कोई नाम नहीं था, वह रोने लगा. प्रजापति ने पूछा क्यों रो रहा है, तो बताया कि उसका कोई नाम नहीं है इसलिए प्राणात्मा जोर जोर से रो रहा है. तब प्रजापति ने उसके आठ नाम रखे. सभी शैवपुराणों में अष्टमूर्ति शिव का वर्णन मिलता है. भगवान की ये अष्टमूर्तियाँ मायात्मक कही गई हैं क्योंकि यह शिव का विकार कही गई हैं. ये अष्टधा प्रकृति रूप में स्थित हैं जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है “भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च। अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।” जो पंच तत्व हैं उसके सूक्ष्म कारण रूप तन्मात्राएँ हैं जिनमें शिव की स्थिति मान्य है. जो कुछ भी दृश्य और अदृष्ट है वह शिव ही है. शिव ही ब्रह्म हैं, शिव ही संसार भी हैं.
शिव की ये आठ मूर्तियाँ इस प्रकार से हैं –
जलं वह्निस्तथा यष्टा सूर्याचन्द्रमसौ तथा ।
आकाशं वायुरवनी मूर्तयोऽष्टौ पिनाकिनः। ।
1. शर्व :- पूरे जगत को धारण करने वाली पृथ्वीमयी मूर्ति के स्वामी शर्व है, इसलिए इसे शिव की शार्वी प्रतिमा भी कहते हैं. सांसारिक नजरिए से शर्व नाम का अर्थ और शुभ प्रभाव भक्तों के हर को कष्टों को हरने वाला बताया गया है. यह पार्थिव शिव हैं.
2. भीम : – शिव की आकाशरूपी मूर्ति है, जो बुरे और तामसी गुणों का नाश कर जगत का कल्याण करती है. इसके स्वामी भीम है. यह भैमी नाम से प्रसिद्ध है. भीम नाम का अर्थ भयंकर रूप वाले भी हैं, जो उनके भस्म से लिपटी देह, जटाजूट, नागों के हार पहनने, बाघम्बर धारण करने वाले या बाघ के आसन पर बैठने वाले हैं.
3. उग्र : – वायु रूप में शिव जगत को गति देते हैं और पालन-पोषण भी करते हैं. इसके स्वामी उग्र है, इसलिए यह मूर्ति औग्री के नाम से भी प्रसिद्ध है. उग्र नाम का मतलब बहुत ज्यादा उग्र रूप वाले होना बताया गया है. शिव के तांडव नृत्य में भी यह शक्ति स्वरूप उजागर होता है.
4. भव : – शिव की जल से युक्त मूर्ति पूरे जगत को प्राणशक्ति और जीवन देने वाली है. इसके स्वामी भव है, इसलिए इसे भावी भी कहते हैं. शास्त्रों में भी भव नाम का मतलब पूरे संसार के रूप में ही प्रकट होने वाले देवता बताया गया है.
5. पशुपति : – यह सभी आंखों में बसी होकर सभी जीवात्माओं की नियंत्रक है. दुर्जन वृत्तियों से परिपूर्ण जीवात्मा पशु ही है. इस मूर्ति में भगवान उसके पशु रूप का नाश कर उन्हें मुक्त करते हैं. इसलिए इसे पशुपति भी कहा जाता है. पशुपति नाम का अन्य अर्थ है पशुओं के स्वामी अर्थात जो जगत के जीवों की रक्षा व पालन करते हैं.
6. रुद्र :- यह शिव की अत्यंत ओजस्वी मूर्ति है, जो पूरे जगत के अंदर-बाहर फैली समस्त ऊर्जा व गतिविधियों में स्थित है. इसके स्वामी रूद्र हैं इसलिए यह रौद्री नाम से भी जानी जाती है. रुद्र नाम का अर्थ है रुलाने वाला. रूद्र शिव तामसी व दुष्ट प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखते हैं.
7. ईशान : – यह सूर्य रूप में आकाश में चलते हुए जगत को प्रकाशित करती है. शिव की यह दिव्य मूर्ति ईशान कहलाती है. ईशान रूप में शिव ज्ञान व विवेक देने वाले बताए गए हैं. ज्ञान के लिए ईशान शिव की पूजा करनी चाहिए. सूर्य देव विद्या और वेद ज्ञान के नैसर्गिक कारण हैं.
8. महादेव : – चन्द्र रूप में शिव की यह साक्षात मूर्ति मानी गई है. चन्द्र किरणों को अमृत के समान माना गया है, यह किरणें समस्त औषधियों, फल-फुल का प्राण है. चन्द्र रूप में शिव की यह मूर्ति महादेव के रूप में प्रसिद्ध है. इस मूर्ति का रूप अन्य से व्यापक है. महादेव नाम का अर्थ देवों के देव होता है. यानी सारे देवताओं में सबसे विलक्षण स्वरूप व शक्तियों के स्वामी शिव ही हैं.
इन अष्ट मूर्तियों की मानव देह में स्थिति भी बताई गई है –
१- आँखों में “रूद्र” नामक मूर्ति प्रकाशरूप में स्थित है. इसी शक्ति से प्राणी देखता है.
२-“भव ” ऩामक मूर्ति अन्न पान करके शरीर की वृद्धि करती है. यह स्वधा कहलाती है.
३-“शर्व ” नामक मूर्ति अस्थिरूप से आधारभूता है . यह आधार शक्ति ही गणेश कहलाती है.
४-“ईशान” शक्ति प्राणापन – वृत्ति को प्राणियों में जीवन शक्ति है.
५-“पशुपति ” मूर्ति उदर में रहकर अशित- पित्त को पचाती है. जिसे जठराग्नि कहा जाता है.
६- “भीमा ” मूर्ति देह में छिद्रों का कारण है जिसके द्वारा मनुष्य शरीर में उत्पन्न विष का उत्सर्जन करता है.
७-“उग्र ” नामक मूर्ति जीवात्मा के ऐश्वर्य रूप में रहती है.
८- “महादेव ” नामक मूर्ति संकल्प रूप से प्राणियों के मन में रहती है .
इस संकल्प रूप चन्द्रमा के लिए ” नवो नवो भवति जायमान: ” कहा गया है , अर्थात संकल्पों के नये नये रूप बदलते हैं.
अष्टमूर्तियों के तीर्थ स्थल :
१– सूर्य :- सूर्य ही दृश्यमान प्रत्यक्ष देवता हैं. सूर्य और शिव में कोई अन्तर नही है.सभी सूर्य मन्दिर वस्तुत: शिव मन्दिर ही हैं. काशी स्थित “गभस्तीश्वर ” शिवलिंग सूर्य का शिव स्वरूप है .
२-चन्द्र -: शोमनाथ का मन्दिर है. यह चन्द्रमा द्वारा ही स्थापित किया गया था.
३-यजमान -: नेपाल का पशुपतिनाथ मन्दिर.
४-क्षिति लिंग :- तमिलनाडु के शिव कांची में स्थित आम्रकेश्वर को माना जाता है.
५- जल लिंग :- तमिलनाडु के त्रिचिरापल्ली में जम्बुकेश्वर मन्दिर को जल लिंग माना जाता है.
६- तेजो लिंग:-अरूणांचल पर्वत पर है अग्निलिंग स्थित है.
७- वायु लिंग :- आन्ध्रप्रदेश के अरकाट जिले में कालहस्तीश्वर वायु लिंग है.
८-आकाश लिंग :- तमिलनाडु के चिदम्बरम् में स्थित है. यह अद्भुत मन्दिर है.
शिव अष्टमूर्ति पूजा मन्त्र–
1-एते गंधपुष्पे ॐ सर्वाय क्षितिमूर्तिये नम:
2-एते गंधपुष्पे ॐ भवाय जलमूर्तये नम:
3-एते गंधपुष्पे ॐ रुद्राय अग्निमूर्तये नम:
4-एते गंधपुष्पे ॐ उग्राय वायुमूर्तये नम:
5-एते गंधपुष्पे ॐ भीमाय आकाश स्वर्गये नम:
6-एते गंधपुष्पे ॐ पशुपतये यजमान मूरथये नम:
7-एते गंधपुष्पे ॐ महादेवाय सोममूर्तये नम:
8-एते गंधपुष्पे ॐ ईशानाय सूर्य मूरतये नम:
अष्टमूर्ति स्तोत्र –
क्षितिमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निक्षिति कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ १॥
जलमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निजलकर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ २॥
वह्निमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निवह्नि कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ३॥
वायुमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निस्पर्श कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ४॥
व्योममूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निव्योम कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ५॥
चन्द्रमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निस्वान्त कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ६॥
सूर्यमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता निदृश्य कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ७॥
यष्टृमूर्ते नमस्तुभ्यं जाता नियम्य कर्मसु ।
मयितिष्ठन्ति पापानि तानि नाशय शङ्कर ॥ ८॥
अष्टमूर्तेस्स्तुतिमिमां यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
किल्बिषादखिलान्मुक्तस्स्वर्गं मोक्षञ्चविन्दति ॥ ९॥
॥ इत्यष्टमूर्ति स्तुतिः ॥

