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हरिद्वार में स्थित कनखल को भगवान शिव जी का ससुराल माना जाता है. कनखल ही दक्ष की राजधानी थी जहाँ उनका महल था. यहाँ सुप्रसिद्ध दक्षेश्वर महादेव मंदिर स्थित है. पुराणों के अनुसार यह वही मंदिर है जहां राजा दक्ष ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया था. सबसे पुराने मत्स्य पुराण में कनखल के कारण गंगा को पुण्यशाली कहा गया है. इससे इसकी प्राचीनता का अनुमान सिद्ध होता है. कोई तीर्थ एकदिन में नहीं बनता, उसके विकसित होने में हजारों वर्ष लगते हैं.

कथा के अनुसार इस यज्ञ में शिव से द्वेषवश दक्ष ने सभी देवी-देवताओं, ऋषियों और संतों को आमंत्रित किया था परंतु भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया था. दक्ष की पुत्री के रूप जन्मी माता सती न बुलाये जाने पर भी यज्ञ में शरीक हुई थी. कथाओं के अनुसार दक्ष द्वारा किये जा रहे शिव का अपमान सती नहीं देख पाई और यज्ञ की अग्नि में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए थे. माना जाता है जब ये बात महादेव को पता लगी तो उन्होंने गुस्से में वीरभद्र को जन्म दिया और आदेश दिया कि यज्ञ अधर्म करने वाला में कोई भी न बचे.

वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और देवताओ को मारा जिसमे किसी के दांत टूटे, किसी के सिर फूटे. इसी यज्ञ में पूषा के दांत टूटे थे. पुराणों के अनुसार यज्ञ की रक्षा करने वाले यज्ञ पुरुष विष्णु से वीरभद्र का भयंकर युद्ध हुआ था. वीरभद्र की शक्ति देख विष्णु भाग खड़े हुए थे. जब सभी देवता भाग खड़े हुए तब वीरभद्र ने यज्ञ का ध्वंश कर दिया. यज्ञ के ध्वंश होने के बाद सृष्टि में हाहाकार मच गया कि यज्ञ के न होने पर देवता कैसे जिन्दा रहेंगे? देवता तो यज्ञ पर ही जीवित रहते हैं. हाहाकार मचने के बाद देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने राजा दक्ष को जीवनदान दिया और उस पर बकरे का सिर लगा दिया. राजा दक्ष को अपनी गलतियों का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी. ऋषियों और देवताओं के कहने पर भगवान शिव कनखल में स्थापित हो गये.

सावन के महीने यहां भक्तों की ज्यादा भीड़ उमड़ती है. दुनिया के सारे मंदिरों में शिव जी की शिंवलिंग के रूप में पूजा की जाती है. यही एक ऐसा मंदिर है यहां भगवान शंकर के साथ-साथ राजा दक्ष की धड़ के रूप में पूजा होती है. सावन के महीने जो कोई भी यहां जलाभिषेक करता है उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. कहा जाता है यहां भगवान साक्षात रूप में विराजमान हैं. इस मंदिर का निर्माण 1810 AD में रानी धनकौर ने करवाया था और 1962 में इसका पुननिर्माण किया गया था. मंदिर के बीच में भगवान शिव जी की मूर्ति लैंगिक रूप में विराजित है. भगवान शिव का यह मंदिर देवी सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति के नाम पर रखा गया है. मंदिर में भगवान विष्णु के पाँव के निशान बने हैं. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में भगवान शिव के वाहन “नंदी महाराज” विराजमान है. इस मंदिर में एक छोटा यज्ञ कुंड है जिसमे सती ने प्राण की आहुति दी थी . दक्ष महादेव मंदिर के निकट गंगा के किनारे पर “दक्षा घाट” है , जहां शिव भक्त गंगा में स्नान कर भगवान शिव के दर्शन करके आनंद प्राप्त करते हैं. यहाँ एक सती घाट भी है. मां आनंदमयी ने यहाँ दस महाविद्या मन्दिर का निर्माण करवाया था. यह मन्दिर दक्षेश्वर महादेव के पास ही स्थित है. मां आनंदमयी काली की उपासक थीं.

शक्ति के साधकों को कनखल का दर्शन स्वयं ही सपने में होने लगता है. कनखल में स्थित सती शक्ति के उपासकों को स्वयं बुलाती हैं और उन्हें दर्शन प्राप्त होता है. दक्षेश्वर महादेव सिद्ध शक्ति स्थल है. यहाँ रहकर साधना करने वाले की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है.