राहू केतु को अशुभ ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है लेकिन ये ग्रह शुभ और अशुभ फल अन्य ग्रहों के समान ही देते हैं. केतू की तुलना में राहू ज्यादा शुभ या अशुभ होता है. इनका शुभत्व या अशुभत्व कुंडली में स्थितियों के अनुसार ही होते हैं. गुरु किसी की जन्मकुंडली में मारक हो जाता है जबकि पारम्परिक ज्योतिष में माना जाता है कि गुरु सदैव शुभ ही होता है. इसी प्रकार राहु-केतु के बारे में कहा जा सकता है कि ये पाप ग्रह हैं लेकिन यह राजयोगकारक होते हैं. दशम भाव में राहु राजयोगकारक बन जाता है बर्शते राशि स्वामी भी शक्तिशाली होकर अच्छे स्थान में बैठा हो. जब राहू-केतु शुभ होते हैं तब ये जातक तत्काल ऊँचाइयों पर ले जाते हैं.
राहू का फल शनि (शनिवत राहु) तथा केतु (भौमवत केतु) का फल मंगल के समान समझने चाहिए ऐसा परम्परिक ज्योतिष में कहा जाता है. इनका स्वभाव कुछ क्रमश: शनि-मंगल की तरह ही होता है. सूर्य, चंद्र, गुरु के साथ राहु की युति होने पर सामान्यत: यह तामसिक ग्रह इनके शुभ फलों को नष्ट करता है. सूर्य-चन्द्र के साथ इन ग्रहों ग्रहण योग बनता है जिसे अशुभ माना जाता है परन्तु ज्यादातर अशुभ भावों में यह योग विनाशकारी होता है. ऐसा माना जाता है कि राहु बुध या शुक्र के साथ प्राय: सम रहता है. मंगल के साथ नियंत्रित या निर्बल होता है. शनि के साथ राहु और अधिक बलवान हो जाता है. शनि की मूलत्रिकोण राशि कुम्भ राहु की भी मूलत्रिकोण राशि मानी गई है. कुम्भ का राहु बहुत बलशाली हो जाता है. राहु की खुद की कोई राशि नहीं होती, इसलिए वह जिस भी स्थान में होता है उस स्थान के अधिपति के अनुसार ही ही फल देता है. यदि राहु अकेला ही केंद्र या त्रिकोण में बैठा हो और वह केंद्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ युति करता है तो योगकारक बनता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहु 3, 6, 10 व 11वें भाव में बलवान बनता है और यहाँ यह बेहतर फल करता है.
राहु की तरह केतु भी सूर्य, चंद्र, बुध के साथ प्राय: इनके फलों को खराब करता है. यह गुरु के साथ गुरु जैसा व्यवहार करता है लेकिन गुरु-चंडाल योग का निर्माण कर जातक का नाश करता देखा गया है. यह भी शुक्र शनि के साथ सम तथा मंगल के साथ बली होता है. यह राहू-केतु की युतियों में स्थूल सिद्धांत हैं.
1- राहू- केतू केंद्र के स्वामी के साथ त्रिकोण में बैठा हो तो राजयोग होता है .
2- राहू- केतू यदि त्रिकोण के स्वामी के साथ बैठे तो भी राजयोग करता है .
3-किसी जातक की कुंडली में अगर राहु छठे भाव में स्थित होता है और उस कुंडली के केन्द्र में गुरु विराजमान होता है तो यहां अष्टलक्ष्मी नामक शुभ योग बनता है. जिस भी व्यक्ति की कुंडली में यह योग होता है वह व्यक्ति कभी धन के अभाव में नहीं रहता. इस योग के अनुरूप, राहु अपना नकारात्मक फल त्यागकर शुभ फल देने लगता है और व्यक्ति को अत्याधिक आस्थावान और ईश्वर के प्रति समर्पित बनाता है. इन्हें जीवन में यश और सम्मान हासिल होता है.
4- राहु द्वारा निर्मित शुभ योगों में लग्नकारक योग का नाम भी शामिल है. यह योग मेष, वृष और कर्क लग्न की कुंडलियों में बनता है, जब राहु द्वितीय, नौवें या दसवें भाव में होता है. जिस भी व्यक्ति की कुंडली में यह योग बनता है, उस व्यक्ति को राहु के नकारात्मक प्रभाव को नहीं झेलना पड़ता. ऐसे जातकों को राहु शुभ फल देता है, उन्हें दुर्घटना का सामना ना के बराबर करना पड़ता है. इन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है और वैयक्तिक जीवन भी सुखमय होता है.
5-जिन जातकों की कुंडली में राहु उपचय स्थान में होता है, उन्हें अक्सर राहु की नकारात्मक आकस्मिकता का सामना नहीं करना पड़ता. जिस व्यक्ति की कुंडली के छठे, तृतीय या एकादश भाव के अलावा लग्न में मौजूद राहु पर शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही होती है तो उसे ताउम्र आर्थिक लाभ मिलता रहता है. जिस भी जातक की कुंडली में ये योग बनता है उनके मुश्किल से मुश्किल काम भी आसानी से बनते चले जाते हैं.
6-राहु का शुभ सूर्य के साथ अथवा सूर्य के नक्षत्र में होना राजयोग जैसा फल देता है.
7-शुभ गुरु के साथ या गुरु के नक्षत्र में राहु हो तो ऐसी ग्रह स्थिति के आशीर्वाद के फलस्वरूप जातक चुनाव में जीत हासिल करता है. जातक को संतान सुख का सौभाग्य मिलता है और वह आध्यात्मिक कार्यों में अधिक रूचि रखता है.

