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वैष्णव सम्प्रदाय में ॐ नमो भगवते वासुदेवाय बहुत प्रसिद्ध मन्त्र है. यह इतना प्रसिद्ध है कि एकादशी को ट्विटर पर ट्रेंड करता है. आजकल कलियुग में हिन्दू विधि-निषेध नहीं मानता है इसलिए जो निषेध किया गया है उसके विपरीत आचरण करता है. सभी मन्त्रों की तरह वासुदेव मन्त्र के बारे में भी निषेध है कि इसका कीर्तन नहीं किया जा सकता या इसका उच्चारण उचित देश-काल के बगैर नहीं करना चाहिए. मन्त्र जप करने का एक विज्ञान है इसलिए इसका एक निश्चित नियम है जो सभी सम्प्रदायों में मान्य है. भागवत पुराण में भी इस मन्त्र का वर्णन करते समय इसकी मूर्ति का ध्यान और सपर्या इत्यादि का जिक्र किया गया है. इस मन्त्र की मूर्ति का ध्यान और न्यास आदि अकेले नहीं बल्कि विष्णु के व्यूहों के साथ किया जाता है. गरुणादि देवताओं का भी ध्यान पूजन किया जाता है. यह ध्यान रखना चाहिए कि यह वैदिक मन्त्र नहीं है, यह वैष्णव सम्प्रदाय का पांचरात्र मन्त्र है इसलिए इसका यूँ ही बिना दीक्षा लिए जप करने से कोई लाभ की प्राप्ति सम्भव नहीं है.

भागवत पुराण में नारद ने स्पष्ट उपदेश करते हुए कहा है “सपर्यं विविधैर्द्रव्यैर्देशकालविभागवित्.” इस वासुदेव मन्त्र की एक निश्चित सपर्या है जिसके अनुसार इस मन्त्र का न्यास पूजन किया जाता है तदुपरांत इसका जप, नारायण के स्तोत्र, नारायण सूक्त आदि का पाठ किया जाता है.

जपश्च परमो गुह्यः श्रूयतां मे नृपतज्।
यं सप्तरात्रं प्राप्तन्पुमां पश्यति खेचरन् ॥ 53 ॥

हे राजकुमार, अब मैं तुम्हें वह पर गुह्य मंत्र बताऊंगा जो ध्यान (45-49 में ) हमने बताया था इसी ध्यान की प्रक्रिया के साथ जपना चाहिए। जो व्यक्ति सात रात्रि तक इस मंत्र का ध्यानपूर्वक जप करता है वह सिद्ध मनुष्यों को आकाश में विचरण करते हुए देख सकता है।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
मंत्र्रेणानेन देवस्य कुर्याद् द्रव्यमयीं बुध:।
सपर्यं विविधैर्द्रव्यैर्देशकालविभागवित् ॥ 54 ॥

यह मन्त्र है -ॐ नमो भगवते वासुदेवाय. व्यक्ति को इस मंत्र का जप विधिपूर्वक निर्धारित नियमों के अनुसार देश काल का विचार करके करना चाहिए. बुद्धिमान पुरुष को इस मन्त्र के द्वारा तरह तरह की सामग्रियों से भगवान की द्रव्यमयी पूजा करनी चाहिए.