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शास्त्रों में ॐ के उच्चारण का अधिकार ब्राह्मण को भी नहीं है ऐसा ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना है. आपने यह तो सुना होगा की शुद्र और स्त्रियों को ॐ और गायत्री मन्त्र जपने का अधिकार नहीं है लेकिन ब्राह्मण को भी अधिकार नहीं है यह नहीं सुना होगा. ब्राह्मण हरिः ॐ करके ॐ का उच्चारण करता है. ऐसे में सवाल है कि ॐ सभी मन्त्रों का सेतु है और सनातन धर्म में मन्त्र दीक्षा दी जाती है जिसे करोड़ों हिन्दू प्राप्त कर मन्त्रों का जप करते हैं, तो ऐसे में क्या वह गलत है? पतंजली योग सूत्र में “तज्जजप: तदर्थ भावनं” और भगवद्गीता में “ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्। यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।8.13।। ” द्वारा क्या दंडी सन्यासी को ही जपने का निर्देश किया गया है? ॐ के उच्चारण का अधिकार सिर्फ डंडी स्वामी को ही है अन्य किसी को नहीं है? पुराण और साम्प्रदायिक स्मृतियों को छोड़ कर यह किस शास्त्र में वर्णन किया गया है, यह उन्हें बताना चाहिए. शास्त्र (श्रुतियां) प्रमाण हैं लेकिन सम्प्रदाय के धर्म शास्त्र और पुराण आध्यात्म के बावत प्रमाण नहीं हैं. सम्प्रदाय के शास्त्र अपने सम्प्रदाय के नियम-कानून और आचार स्थापित करते हैं जिस पर वह सम्प्रदाय चलता है और उसका अनुगमन करने वाले उस पर चलते हैं. लेकिन वह सब पर लागू नहीं होता. वैष्णवों का आचार शैवों पर लागू नहीं होता और शैवों का आचार शाक्तो पर लागू नहीं होता.

वैष्णव सम्प्रदाय में दीक्षित हिन्दू ॐ नमो नारायणाय मन्त्र का जप करता है और उसमे ॐ का उच्चारण करता ही है. ध्रुव को यह मन्त्र नारद ने प्रदान किया था, वह तो दंडी सन्यासी नहीं था? ॐ नम: शिवाय मन्त्र के जप का निर्देश सभी शैवागमों में प्राप्त है, वे तो इसे निषिद्ध नहीं कहते ? शिवपुराण आदि में शुद्र और स्त्री को प्रणवविहीन पंचाक्षरी मन्त्र जपने के लिए कहा गया है जो मनुवाद का प्रभाव है. गायत्री मन्त्र के बावत यह अवश्य वर्णन है कि इसको जपने का अधिकार सबको नहीं है ( यह परम्परा से प्राप्त है) लेकिन ॐ नम: शिवाय मन्त्र के साथ ऐसा नहीं है. शास्त्रों में स्त्री को ॐ और गायत्री वर्जित है क्योंकि अनुभव से ऋषियों को ज्ञात था कि इनके जप से उनके गर्भ के संकुचित होने का खतरा रहता है, इसका जप करने वाली महिलाये मां नहीं बन सकतीं. यह प्रमुख कारण है कि उनके लिए यह निषेध है. लेकिन एक विदुषी, सन्यास धर्म पर चलने वाली, भक्त या त्यागी स्त्री ॐ का जप कर सकती है. दूसरी तरफ शुद्र को सिर्फ मनुस्मृति के कानून के तहत ही ॐ का जप वर्जित है (वर्णाश्रम व्यवस्था के अनुसार) अन्यथा शुद्र भी अन्य मनुष्यों की तरह ही मनुष्य है और वह भी ब्रह्म ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी है. शास्त्र का निर्णय यह है कि दीक्षित व्यक्ति को ॐ के जप का अधिकार है. कोई भी दीक्षित व्यक्ति ॐ का जप कर सकता है. दीक्षा में मन्त्र जप कब , कैसे, किस स्थान पर करें इत्यादि विधि निषेध बताये जाते हैं. मन्त्र का कभी भी उच्चारण नहीं किया जाता, उसी प्रकार से ॐ का उच्चारण भी कहीं भी नहीं करना चाहिए. ॐ सबसे पवित्र है इसलिए इसका उच्चारण भी पवित्रता से करना चाहिए. भागवत पुराण में नारद ने ध्रुव को भी इस प्रकार निर्देश किया है.

दूसरा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ॐ नैसर्गिक ध्वनि है इसका वाचिक जप नही किया जाता. भोजन करने के बाद मनुष्य स्वयं ओउम का उच्चारण करता है. इससे यह बात सामने आती है कि यह नैसर्गिक ध्वनि है, इसके जप के लिए दीक्षा की जरूरत नहीं है. वास्तव में इसको मन्त्र कहना भी गलत है. शास्त्रों में दीक्षा सदैव उन मन्त्रो की दी जाती है जो किसी परम्परा के मन्त्र होते हैं. मन्त्रों के द्रष्टा ऋषि होते हैं, वे उसे प्रदान करते हैं और वह परम्परा से प्राप्तव्य है. गुरु से प्राप्त किये बगैर उन मन्त्रो से कुछ भी किसी को प्राप्त नहीं हो सकता. अनेक मन्त्र श्रापित और कीलित होते हैं इसलिए बिना गुरु से प्राप्त किये उन मन्त्रों का जप करने वाले को कोई लाभ नहीं मिलेगा. ॐ का द्रष्टा कोई ऋषि नहीं है. यह ईश्वर से सबको प्राप्त है क्योंकि यह ईश्वर का वाचक एक मात्र पूर्ण नाम है. अन्य सभी राम, कृष्ण इत्यादि नाम अपूर्ण हैं इसलिए भगवद्गीता में देहान्तर के समय “राम नाम” कहने का निर्देश नहीं है बल्कि ॐ इस एक अक्षर का उच्चारण करने का ही निर्देश दिया गया है. इससे स्पष्ट है कि ॐ के लिए दीक्षा की आवश्यकता नहीं है.