आत्मा के स्वरूप की अभिव्यक्ति देह, इन्द्रिय, प्राण, अन्तःकरण के माध्यम से होती है. इसलिए देह, इन्द्रिय, प्राण, अन्तःकरण को भी अध्यात्म कहते हैं. ये आत्मा के अभिव्यञ्जक संस्थान हैं. आत्मा का अर्थ है सच्चिदानन्दस्वरूप ब्रह्म। उसी को परमात्मा या भगवान् भी कहते हैं. अध्यात्मविद्या विद्यानां वादः प्रवदतामहम्…. भगवद्गीता (10.32) में भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र का यह कथन है. समग्र विद्या में अध्यात्मविद्या का सर्वोच्च स्थान है. अध्यात्म का अर्थ हमने बताया – आत्मा के अभिव्यञ्जक संस्थान स्थूल, सूक्ष्म, कारण शरीर हैं. देह, इन्द्रिय, प्राण, अन्तःकरण भी इन्हीं को कहते हैं. अतः इनका नाम भी अध्यात्म है. आत्मा की अभिव्यक्ति जिनके माध्यम से होती है उनका नाम अध्यात्म है.
आत्मा के अभिव्यञ्जक संस्थान, कहीं-कहीं उसको पुर्यष्टक भी कहते हैं – कर्मेन्द्रिय पञ्चक, ज्ञानेन्द्रिय पञ्चक, प्राण पञ्चक, अन्तःकरण चतुष्ट्य, तन्मात्र पञ्चक, अविद्या, काम और कर्म. इन्हीं का नाम सूक्ष्म और कारण शरीर है. स्थूल शरीर के द्वारा सूक्ष्म शरीर की अभिव्यक्ति होती है. सूक्ष्म शरीर में कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय, अन्तःकरण और प्राणों का सन्निवेश। सूक्ष्म शरीर के द्वारा कारण शरीर की अभिव्यक्ति होती है. कारण शरीर की स्फुट अभिव्यक्ति स्वप्नावस्था में परिलक्षित है. उसे अविद्या भी कहते हैं. कारण शरीर के द्वारा जीव की अभिव्यक्ति होती है. और जीव भगवत्स्वरूप ब्रह्मतत्त्व का अभिव्यञ्जक संस्थान है. ब्रह्म (आत्मा) और इनके अभिव्यञ्जक संस्थान, इन सबका नाम वेदान्त में अध्यात्म है.
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– पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती जी

