राजा राम के बारे में एकमात्र आथेंटिक ग्रन्थ वाल्मीकि रामायण है. वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट वर्णन है कि रघुकुल वंश के राजा मांसाहारी थे और उस समय यज्ञ तथा पितरों के श्राद्ध आदि में मांस का प्रयोग आम था यह वाल्मीकि रामायण से बखूबी सिद्ध होता है. वाल्मीकि रामायण में अनेकानेक जगहों पर इसका उद्धरण मिलता है. वास्तव में राम का जन्म ही अपवित्र यज्ञ से होता है.
राम के पिता दशरथ द्वारा यज्ञ का उद्धरण बाल काण्ड में इस प्रकार से है –

वाल्मीकि रामायण में सूर्य वंश के पहले राजा इच्छ्वाकू के मांस से पिंडदान का प्रसंग –

सीता द्वारा गंगा की मनौती में भी मांस-मदिरा द्वारा पूजा करने का वर्णन है —

इसके अतिरिक्त अरण्यकाण्ड में जटायु के पिंडदान करते समय भी मांस का पिंडदान का वर्णन किया गया है –
रामो अथ सह सौमित्रिः वनम् यात्वा स वीर्यवान् |
स्थूलान् हत्वा महा रोहीन् अनु तस्तार तम् द्विजम् || ३-६८-३२
रोहि मांसानि च उद्धृत्य पेशी कृत्वा महायशाः |
शकुनाय ददौ रामो रम्ये हरित शाद्वले || ३-६८-३३
अर्थ खोज कर स्वयं पढिये लेकिन सिर्फ गीताप्रेस पर आश्रित न रहे. गीता प्रेस की किताबो में श्लोक भी निकाल दिए जाते हैं और अनुवाद भी अंडबंड किये गये हैं. मसलन “मांसभूतोदनेन” से मांसऔदन स्पष्ट है लेकिन यह गीताप्रेस मके नहीं मिलेगा.
उत्तरकाण्ड को प्रक्षिप्त कहते हैं इसलिए उसका उद्धरण नहीं दिया जा रहा है.

