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सनातन हिन्दू धर्म के सम्प्रदायों की परम्परा अति प्राचीन है. जितने धर्माचार्य हुए जिनसे इंतना बड़ा हिन्दू धर्म है वे परम्परा से दीक्षित होकर फिर अपने तप से तपे और आचार्य हुए. आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बर्काचार्य, रामानन्द इत्यादि सभी आचार्य जिस धर्म ज्ञान की शिक्षा देते हैं और जिनके ग्रन्थों पर सभी सम्प्रदाय आश्रित हैं वे सनातन वैदिक धर्म का उपदेश करते हैं. उपनिषदों तथा पुराणों में गुरु परम्परा का विवरण प्राप्त होता है. संगीत और नृत्य भी एक घराना और एक परम्परा से प्राप्त होती है और उन कलाओं के बावत उनके गुरुओं के रचित ग्रन्थों को ही प्रमाण माना जाता है. सनातन धर्म के सभी सम्प्रदाय श्रुति को ही एक मात्र प्रमाण मानते हैं. ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने प्राण प्रतिष्ठा के सम्बन्ध में लगभग सभी शास्त्रों का प्रमाण दिया था लेकिन सत्ताधारी के चरण धोकर पीने वाले कुछ लालची वैष्णवों और कलियुगी बाबाओं ने उसे बकवास बता कर अपनी मनमानी की और प्राण प्रतिष्ठा समारोह करवाया. भगवद्गीता में कहा गया है –

अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः।।17.5।
जो मनुष्य, शास्त्रमें जिसका विधान नहीं है ऐसा? दम्भ और अहंकार– इन दोनोंसे युक्त होकर तथा कामना और आसक्तिजनित बलसे युक्त होकर धर्म का कार्य करता है, वह तमोगुणी राक्षसी प्रकृति है. उसके इस कर्म से शुद्ध सत्वमय विग्रह धारण करने वाले ईश्वर की प्रसन्नता नहीं होती.

अयोध्या में अधूरे राममन्दिर का उदघाटन दम्भ और अहंकार में राजनतिक लाभ के लिए किया गया था. भगवद्गीता में बताये दोनों ही गुण उसमे स्पष्ट रूप से सामने दिखे, जिससे यह स्पष्ट है कि वह आसुरी लोगों द्वारा किया कर्म था और उससे लोककल्याण की सम्भावना नहीं है. प्राणप्रतिष्ठा के बाद अयोध्या में लूटपाट होने लगी है, चाय 130 रूपये का मिल रहा है. अयोध्या के गरीबों की प्रोपर्टी भय दिखा कर लुटी जा रही है.

शास्त्रों के अस्वीकरण से यह भी स्थापित हो रहा है कि हिन्दू धर्म के शास्त्र कूड़ा हैं और इनका अपनी ईच्छा और सुविधा के अनुसार प्रयोग करना चाहिए. इन शास्त्रों में कुछ भी सत्य नहीं है. वास्तव में मुहूर्तादि, शिल्पादि शास्त्र ठगी विद्या है. इनके बगैर ही सभी हिन्दू धर्म कर्म सुविधानुसार किया जा सकता है. ये सभी ग्रन्थ धूर्त ब्राह्मणों द्वारा लिखे गये थे. रामचरित मानस कथा कहकर करोड़ों तो कमाना है लेकिन उसको मानना नहीं है. हिन्दुओं को मूर्ख बनाने के लिए भगवद्गीता का राजनीतिक उपयोग करना है लेकिन भगवद्गीता में जिसे अशास्त्रविहित, आसुरी सम्पद कह कर हेय कहा गया है तथा भगवान स्वयं कहते हैं ” ऐसे राक्षसों को मैं घोर-नरकों में डालता हूँ”, उसे नहीं मानना है.

राजनीतिक हिंदुत्व के समर्थकों द्वारा शंकराचार्यों, परम्पराओं और शास्त्रों का सामाजिक राष्ट्रीय अपमान करना यह स्पष्ट करता है कि लूटपाट करने वाली बलात्कारी आसुरी शक्तियाँ बड़े कार्पोरेट बनियों के रैकेट के साथ मिलकर शक्तिशाली हो गई है और इनसे धर्म, सम्प्रदाय, तीर्थ सबको बहुत बड़ा खतरा है. इस खतरे को ही कलियुग का सबसे महत्वपूर्ण खतरा सभी पुराणों तथा रामायण आदि धर्म ग्रन्थों में बताया गया है. इसी से जुड़ा दूसरा खतरा सामाजिक पतन, समाज में लूटपाट करने वाली बलात्कारी शक्तियों का वर्चस्व से हिन्दुओं का सर्वनाश होना है. किसी समाज का सर्वनाश इसी के द्वारा लिखा जाता है. हिन्दू एकबार फिर हजारों वर्ष की गुलामी में जाने की तैयारी में है. ईसाई समाज के पतन का प्रमुख कारण भी यही रहा है. हिन्दू समाज को इस षड्यंत्र को जल्द से जल्द समझ लेना चाहिए.