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गंगा और गायत्री की तरह ही गोमाता हिन्दू संस्कृति का आधार हैं. यह सभी शात्रों में स्पष्ट कहा गया है कि गोमाता में समस्त कष्टों को हरने की असीम शक्ति है क्योंकि गोमाता के दिव्य शरीर में ३३ करोड़ देवताओं का वास है. पद्म पुराण में कहा गया है –
गौ को अपने प्राणों के समान समझे, उसके शरीर को अपने ही शरीर के तुल्य माने, जो गौ के शरीर में सफ़ेद और रंग-बिरंगी रचना करके, काजल, पुष्प, और तेल के द्वारा उनकी पूजा करते है, वह अक्षय स्वर्ग का सुख भोगते हैं. जो प्रतिदिन दूसरे की गाय को मुठ्ठीभर घास देता है, उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है जैसे ब्राहमण का महत्व है, वैसे ही गौ का महत्व है, दोनों की पूजा का फल समानहै. भगवान के मुख से अग्नि, ब्राह्मण, देवता और गौ – ये चारो उत्पन्न हुए इसलिए ये चारो ही इस जगत के जन्मदाता हैं.
गौ सब कार्यों में उदार तथा समस्त गुणों की खान है. गौ की प्रत्येक वस्तु पावन है, गौ का मूत्र, गोबर, दूध, दही और घी, इन्हे “पंचगव्य” कहते हैं. इनका पान कर लेने से शरीर के भीतर पाप नहीं ठहरता. जिसे गाय का दूध दही खाने को नहीं मिलता, उसका शरीर मल के समान है.
“ घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवा:.
घृतनघो घ्रातावर्त्तास्ता में सन्तु सदा गृहे ” ..
जो गौ की एक बार भी प्रदक्षिणा करके उसे प्रणाम करता है वह सभी पापों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग का सुख भोगता है.
गाय का शरीर देव विग्रह है –
१. सीगों में भगवान श्री शंकर और श्रीविष्णु सदा विराजमान रहते हैं.
२. गौ के उदर में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा , ललाट में महादेवजी रहते हैं.
३. सीगों के अग्र भाग में इंद्र, दोनों कानो मेंअश्र्वि़नी कुमार, नेत्रो मे चंद्रमा और सूर्य, दांतों में गरुड़, जिह्वा में सरस्वती देवी का वास होता है .
४. अपान (गुदा)में सम्पूर्ण तीर्थ , मूत्र स्थान में गंगा जी , रोमकूपो में ऋषि , मुख और प्रष्ठ भाग में
यमराज का वास होता है .
५. दक्षिण पार्श्र्व में वरुण और कुबेर, वाम पार्श्र्व में तेजस्वी और महाबली यक्ष, मुख के भीतर गंधर्व, नासिका के अग्र भाग में सर्प, खुरों के पिछले भाग में अप्सराएँ वास करती हैं.
६. गोबर में लक्ष्मी , गोमूत्र में पार्वती, चरणों के अग्र भाग में आकाशचारी देवता वास करते है.
७. रँभाने की आवाज में प्रजापति और थनो में भरे हुए चारो समुद्र निवास करते हैं.
जो प्रतिदिन स्नान करके गौ का स्पर्श करता है और उसके खुरों से उडाई हुई धुल को सिर पर धारण करता है वह मानो सारे तीर्थो के जल में स्नान कर लेता है, और सब पापों से छूट जाता है.

दान का महत्त्व –
ब्राहमण को सफ़ेद गौ दान करने से, मनुष्य ऐश्वर्यशाली होता है. धुएं के समान रंग वाली गौ स्वर्ग प्रदान करने वाली होती है. कपिला गौ का दान अक्षय फल देने वाला है, कृष्ण गौ का दान देकर मनुष्य कभी कष्ट में नहीं पड़त. भूरे रंग की गाय दुर्लभ है, गौर रंग वाली गाय कुल को आनंद प्रदान करने वाली होती है. मन, वचन, क्रिया, से जो भी पाप बन जाते है, उन सबका कपिला गौ के दान से क्षय हो जाता है. जो दस गौए और एक बैल दान करता है उसे अनंत फल प्राप्त होता है. वृष का उत्सर्ग (वृषोत्सर्ग) छोडे हुए सांड अपनी पूँछ से जो जल फेंकता है, वह एक हजार वर्षों तक पितरो के लिए तर्प्तिदायक होता है. सांड या गाय के जितने रोएँ होते हैं उतने हजार वर्षों तक मनुष्य स्वर्ग में सुख भोगता है.
जो गौ का हरण करके उसके बछड़े की मृत्यु का कारण बनता है वह महाप्रलयपर्यंन्त कीड़ों से भरे हुए कुँए में पड़ा रहता है तथा गौओं का वध करके मनुष्य अपने पितरों के साथ घोर रौरव नर्क में पड़ता है.

जन्म कुंडली में अनेक नक्षत्र दोषों में गोदान एक बड़ा उपाय बताया गया ह. गुरु और पितृदोष में गोदान और गो सेवा करने से कष्टों की निवृत्ति होती है. दान कोई भी हो अत्यंत फलदाई होता है इसमें कोई संदेह नहीं है.