स्वामी विवेकान्द के मांसाहार पर कुछ बाते बोलने की वजह से ISKCON ने अमोघ लीलादास को अपने सन्गठन से निकाल बहार किया है और यह चर्चा का विषय बन गया था क्योंकि अमोघ लीलादास बनियों के लिए काम करता है, कार्पोरेट को मैनेजमेंट के गुण बताता है और यूट्यूब चैनल पर काफी प्रसिद्ध है। ISKCON की तरह ही यह भी मूलभूत रूप से एक ठग ही है. मांसाहार मुद्दे को लेकर ही हमने अपनी किताब “रामकृष्ण परमहंस: आध्यात्म प्रसंग-1” में एक अध्सेयाय लिखा है, उससे यह अंश दिया जा रहा है, साथ में एक वीडियो भी दिया जा रहा हैI इस मुद्दे पर यदि तरीके से बात की जाय तो विवेकान्द कहीं से भी न तो दार्शनिक ठहरते हैं और न आध्यात्मिक व्यक्ति ही I
विवेकानंद को मांसाहार से कोई परहेज नहीं था, उन्होंने तो मांसाहार को’ सम्पूर्ण भारत के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा बता डाला है- Disciple: Quite so, Swamiji. We never complain of dyspepsia in our part of the country. I first heard of it after coming to these parts. We take fish with rice, mornings and evenings.
Swamiji: Yes, take as much of that as you can, without fearing criticism. The country has been fooded with dyspeptic Bâbâjis living on vegetables only. That is no sign of Sattva, but of deep Tamas — the shadow of death. Brightness in the face, undaunted enthusiasm in the heart, and tremendous activity — these result from Sattva; whereas idleness, lethargy, inordinate attachment, and sleep are the signs of Tamas. (Complete work -vol-7)
विवेकानन्द संभवत: अंत समय तक अमिष भोजन करते रहे थे। इस मांसाहार से सम्बन्धित विवेकानंद का एक विशेष प्रसंग प्राप्त होता है। अपने विदेश प्रवास में वे कभी किसी अंग्रेज के घर मेहमान थे। उस समय हिन्दू सन्यासी समझ कर घर के स्वामी ने घर में मांस, विशेषकर सूअर का मांस पकाना बंद कर दिया था। उसके एक बच्चे को सूअर का मांस बहुत प्रिय था, भोजन में मांस न मिलने से उसे बड़ी नाराजगी हुई। उसने खानापीना बंद कर दिया। जब विवेकानन्द को यह पता चला तब उसे लेकर किसी होटल में सूअर का मांस खिलाने ले गये थे। क्या विवेकानंद भी खाए थे? किसने देखा ! लेकिन इन बातों से यह प्रतीत होता है कि वे कुछ भी कर सकते थे क्योंकि उन्हें उन्मुक्त जीवन प्रिय था। विवेकानंद ने अनेक पत्रों में खुद को अंग्रेजों की तरह उदारवादी बताया है और खान-पान, जीवनचर्या, विश्वास में कट्टरपंथी लोगों पर अपना गुस्सा भी प्रदर्शित किया है। विवेकानंद सिगार इत्यादि भी पीते थे ..आलासिंगा को लिखे पत्र में वे रूपये का हिसाब देते हैं और बताते हैं कि उन्हें 1 सिगार कितने का मिल रहा है – “The expense I am bound to run into here is awful. You remember, you gave me £170 in notes and £9 in cash. It has come down to £130 in all!! On an average it costs me £1 every day; a cigar costs eight annas of our money.” किसी kidi को लिखे पत्र में 3 मार्च १८९४ को लिखते हैं कि मांसाहार करने वाले क्षत्रिय राम, कृष्ण, जैन तीर्थंकर इत्यादि ने ही हिन्दू धर्म में जो सबसे सुंदरतम है वह दिया।” मांसाहार पर गुरु-शिष्य दोनों ही कट्टर नहीं है, उदारवादी हैं। सनातनधर्म में खाद्याखाद्य और आध्यात्म विमर्श ज्यादातर वैष्णव धर्म की देन है।
But it should be criticized only from the spiritual perspective .. here is video in which I am bit critical to his view. I made three years ego and now since it is a hot topic on social media and youtube, I am putting it trim version. .

