हिंदुत्व ठगों के अधर्म का पर्दाफाश लगातार हो रहा है. देश के सभी चारो शंकराचार्यों, रामानंदाचार्यों और संतो के मन्दिर प्रतिष्ठा को शास्त्र सम्मत नहीं बताये जाने और शिखरविहीन मन्दिर नहीं होता? यह कहने के बाद अब नई खबर आई है. राममन्दिर कार्यक्रम में मन्दिर में एक प्रतीकात्मक शिखर बनाया जा रहा है. शंकराचार्यों के वहिष्कार के बाद रोज कुछ न कुछ नई खबर आ रही है. नई मूर्ति लगा रहे थे और “रामलला विराजमान” का कोई जिक्र ही नहीं, लेकिन जब स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने पूछा “रामलला विराजमान” कहाँ हैं? मन्दिर तो उनका है, केस उन्होंने जीता है तो नई मूर्ति क्यों? तब खबर आई कि वह भी गर्भगृह में रहेंगे. अब निर्वाणी अखाड़ा के महंथ ने साफ कहा है “केवल “रामलला विराजमान” ही रह सकते हैं, दूसरी मूर्ति नहीं रह सकती”.
इधर जगदगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द जी महाराज शनिवार की देर शाम सिद्धपीठ शाकंभरी देवी में माता शांकभरी जयंती में शामिल होने के लिए पधारे. वहां प्रेस से उन्होंने कहा कि अभी उन्होंने रास्ते में आते हुए सुना है कि श्रीरामलला मंदिर में कपड़े का प्रतीकात्मक शिखर बनाया जा रहा है. इसका मतलब है कि उन्होंने स्वीकार किया है कि बिना शिखर के नहीं करना चाहिए था. प्रतीक ही सही भूल सुधार किया जा रहा है.
लेकिन अधूरे विकलांग मन्दिर में शिखर नहीं हो सकता इसलिए यह भी हास्यास्पद ही है. अब तक यह सिद्ध हो चूका है कि मन्दिर पर शैतानी ताकतों ने कब्जा कर लिया है. राहु-केतु द्वारा पूरी तरह से अधिकृत हो चूका है यह नव निर्मित अधूरा मन्दिर. आरएसएस -भाजपा के हिंदुत्व की नास्तिकता बेनकाब हो गई है. इनका एकमात्र मोटिव है- राजनीतिक प्रोजेक्ट पूरा होना चाहिए चाहे धर्म का सत्यानाश ही क्यों न हो. आरएसएस-भाजपा पूरी तरह एक्सपोज हो चुके हैं.

