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अयोध्या में राम मन्दिर में नई मूर्ति की स्थापना की जा चुकी है और 22 जनवरी को उसकी प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम निश्चित है. अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम भाजपा-आरएसएस का राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में प्रसिद्ध हो चूका है. सनातन हिन्दू धर्म के सबसे बड़े गुरु चार शंकराचार्यों ने मन्दिर में किये जाने वाले प्राण प्रतिष्ठा को अशास्त्रीय और धर्म विरोधी बता कर सम्मिलित होने से इंकार कर दिया है. अब हिन्दू धर्म में रामोपासना के वैष्णव सम्प्रदायों में सर्वोच्च रामानंद सम्प्रदाय के गुरु स्वामी रामनरेशाचार्य ने भी मन्दिर कार्यक्रम को राजनीतिक बता कर उसका बॉयकाट कर दिया है. रामानंद संप्रदाय के पीठाधीश्वर ने कहा कि राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपत राय हिंदुओं को बांट रहे हैं. उन्होंने आलोचना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिरों का व्यवसायीकरण कर रहे हैं.

आपको बता दें की राम मन्दिर ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय एक राजनीतिक व्यक्ति हैं. उन्होंने पिछले दिनों कहा था कि रामजन्म भूमि मंदिर रामानंद सम्प्रदाय का है जिस पर ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने मन्दिर को रामानन्द सम्प्रदाय को सौप देने के लिए कहा था. रामजन्म भूमि मन्दिर ट्रस्ट नें रामानंद सम्प्रदाय के पीठाधीश्वर स्वामी रामनरेशाचार्य को आयोजन में आमंत्रित नही दिया है. सनातनी हिन्दू इस अशास्त्रीय अधूरे निर्मित मन्दिर का समर्थन नहीं कर रहे हैं, वहीं आरएसएस-भाजपा का राजनीतिक हिंदुत्व इसके लिए प्रोपगेंडा कर रहा है.

कौन हैं स्वामी रामनरेशाचार्य ?

स्वामी रामनरेशाचार्य जी सगुण एवं निर्गुण रामभक्ति परंपरा और रामानंद सम्प्रदाय के मूल आचार्यपीठ-श्रीमठ, काशी के वर्तमान पीठाधीश्वर हैं. ये वर्ष १९८८ से जगदगुरु रामानंदाचार्य के पद पर प्रतिष्ठित हैं. स्वामीजी, वेद-पुराणों के मर्मज्ञ हैं और छह दर्शनशास्त्रों में इन्होंने सर्वोच्च उपाधियां अर्जित की है. इन्हें देश में न्यायशास्त्र का आधिकारिक विद्वान माना जाता है. रामानंदाचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने से पहले इन्होंने हरिद्वार के उस कैलास आश्रम में वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया, जिसे संस्कृत विद्वानों की पाठशाला कहा जाता है. इनके पढ़ाये हुए अनेक लोग देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में संस्कृत के प्राध्यापक हैं और कई लोग मठ-मंदिरों में प्रधान की हैसियत से देश-धर्म की सेवा में संलग्न हैं. अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए स्वामीजी ने देशभर में पद यात्राएं की और आंदोलन के अगुवा संतों में रहे. पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव ने जब अयोध्या का मुद्दा सुलझाने के लिए रामालय ट्रस्ट का गठन किया तो स्वामी रामनरेशाचार्य को उसका प्रमुख संयोजक बनाया गया. द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंदजी महाराज और श्रृंगेरीपीठ के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ भी रामालय ट्रस्ट में थे.

र्तमान जगद्गुरू रामानंदाचार्च पद प्रतिष्ठित स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज के सत्प्रयासों का नतीजा है कि श्रीमठ से कभी अलग हो चुकी कबीरदासीय, रविदासीय, रामस्नेही, प्रभृति परंपराएं वैष्णवता के सूत्र में बंधकर श्रीमठ से एकरूपता स्थापित कर रही है. कई परंपरावादी मठ -मंदिरों की इकाईयां श्रीमठ में विलीन हो रही हैं. तीर्थराज प्रयाग के दारागंज स्थित आद्य जगद्गुरू रामनंदाचार्य का प्राकट्यधाम भी इनकी प्रेरणा से फिर भव्य स्वरूप में प्रकट हुआ है. देवभूमि हरिद्वार में दुनिया का सबसे बड़ा श्रीराममंदिर निर्माणाधीन है.