Spread the love

ज्योतिष के अनेक प्राचीन ग्रन्थों पुराण, संहिता ग्रथों, तथा जातकाभरण इत्यादि ज्योतिष ग्रंथों में नराकार पुरुष की आकृति या चक्र बनाकर उसके अंगों में नक्षत्रों की स्थापना कर के फलादेश की विधि बताई गई है। इसी प्रकार सर्वतोभद्र इत्यादि चक्रों द्वारा फलादेश करने की कला भी प्रचलन में थी लेकिन अब यह प्रचलन में नहीं है। ज्योतिष शास्त्रों में शनि चक्र बनाकर फलादेश का वर्णन भी है। ये शनि चक्र कई तरह के प्राप्त होते हैं। जातकाभरण में शनि के शुभाशुभ फल को ज्ञात करने की विधि का कुछ इस प्रकार से वर्णन किया है –
नक्षत्रमेकं च शिरोविभागे मुखे लिखेत्त्रिणि युगं च गुह्ये ।
नेत्रे च नक्षत्रयुगं हृदिस्थं भपंचकं वामकरे चतुष्कम ।।
वामे च पादे त्रितयं हि भानां त्रयं दक्षिणपादसंस्थं ।
चत्वारि ऋक्षाणि च दक्षिणारुपे पाणौ प्रणितं मुनिनारदेन ।।

जन्म नक्षत्र से लेकर १ नक्षत्र शिर में, ३ नक्षत्र मुख में, २ नक्षत्र लिंग में, २ नक्षत्र नेत्रों में, ५ नक्षत्र हृदय में, ४ नक्षत्र बाएं हाथ में, ३ नक्षत्र बाएं पैर में, ३ नक्षत्र दाहिने पैर में, ४ नक्षत्र दाहिने हाथ में स्थापित करना चाहिए।
रोगों लाभों हानिराप्तिश्च सौख्यं बंध: पीड़ा सम्प्रयाणं च लाभ: ।
मंदे चक्रे मार्गगे कल्पनीयं तद्वैलोमम्याच्छ्रीघ्रगे स्यु: फलानि ।।
यदि नराकार चक्र में शनि नक्षत्र सिर में पड़े तो रोग, मुख में पड़े तो लाभ, लिंग में पड़े तो हानि, नेत्र में पड़े तो धन लाभ, हृदय में पड़े तो सौख्य, बांयें हाथ में पड़े तो बंधन, बांये पैर में पड़े तो पीड़ा, दाहिने पैर में पड़े तो यात्रा, और दाहिने हाथ में पड़े तो लाभ कराता है। अन्यत्र इसी चक्र से वक्री और मार्गी शनि के अनुसार फल कहा है – सिर पर पड़े और शनि मार्गी हो तो रोग, वक्री हो तो लाभ। मुख में पड़े और शनि मार्गी हो तो लाभ, वक्री हो तो विजय । गुप्तांग में पड़े और शनि मार्गी हो तो हानि, वक्री हो तो पीड़ा। नेत्र में पड़े और शनि मार्गी हो तो लाभ, वक्री हो तो बंधन।हृदय में पड़े तो मार्गी में सुख, वक्री में सुख। बाएं हाथ में पड़े तो मार्गी में बंधन, वक्री में लाभ मिले। बाएं पैर में पड़े तो मार्गी में पीड़ा, वक्री में हानि। दायें पैर में पड़े तो वक्री में लाभ, मार्गी में अच्छी यात्रा, विजय मिले। दायें हाथ में पड़े तो मार्गी में लाभ, वक्री में पीड़ा । यह कितना सत्य निकलता है यह एक शोध का विषय है।