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माघ महीने का प्रारम्भ 25 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ ही हो जायेगा. माघ महीने में इलाहाबाद के संगम तट पर एक महीने का कल्पवास मुक्तिदायक माना गया है. इस कल्पवास में हिन्दू श्रद्धालु महीने भर प्रयाग वास करते हुए प्रति दिन प्रात: गंगा स्नान, पूजन और दान करते हैं तथा वहां पधारे साधु महात्माओं के साथ संगत कर धर्म लाभ करते हैं. साल भर में सारे प्रपंच को छोड़ एक महीने किया गया यह धर्म अनेक प्रकार से श्रद्धालुओं के लिए लाभप्रद बन जाता है. इस कल्पवास से उनका इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जाता है. माघ महीने में स्नान का कितना महात्म्य है उसे संगम पर लगने वाले माघ मेले से समझ सकते हैं.

लोमहर्षण, सूत आदि मुनियों के पूछे जाने पर महर्षि वशिष्ठ ने माघ के महात्म्य का वर्णन करते हुए कहा था कि जो लोग यज्ञ, होम, इष्टपूर्ति इत्यादि कर्मों के बिना ही उत्तम गति प्राप्त करना चाहते हैं, वो माघ में प्रात: नदी आदि के जल में स्नान करें. जो गौ, भूमि, तिल आदि वस्तुओं के दान के बिना ही स्वर्ग लोक जाना चाहते हैं, वे माघ में प्रात: स्नान करें. माघ महीने प्रात; स्नान, जप, होम और दान की विशेषता है. बैशाख में जल और अन्न का दान उत्तम है, कार्तिक में तपस्या और पूजा की प्रधानता मानी गई है. जो लोग माघ महीने प्रातः स्नान करके भगवान के स्तोत्रादि का पाठ करते हैं वे दिव्य लोकों में निवास करते हैं. यदि सकाम भाव से माघ महीने में गंगा स्नान किया जाय तो उससे मनोवांक्षित फल प्राप्त होता है. माघ स्नान बहुत पवित्र और पापनाशक होता है. यही बात महर्षि भृगु ने मणिपर्वत पर विद्याधर से कही थी – जो मनुष्य माघ के महीने में, जब उषाकाल की लालिमा बहुत अधिक हो, उस समय गाँव के बाहर नदी, पोखरे में नित्य स्नान करता है. वह माता-पिता के कुल की सात पीढ़ियों का उद्धार करके स्वयं देवलोक जाता है.

कथा के अनुसार यह विद्याधर अपने पुण्य और धर्म से स्वर्ग लोक चला गया था और वहां उसने स्वर्ग के भोग प्राप्त किये लेकिन उसका मुख व्याघ्र का हो गया था. उसने महर्षि भृगु से इसका कारण और उपाय के बारे में पूछा था. उस समय महर्षि भृगु ने उसे बताया कि तुमने निषिद्ध कर्म किया था. एकादशी को व्रत करके द्वादशी को शरीर पर तेल लगा लिया था जिसकारण तुम्हारा व्याघ्र का मुख हो गया. पूर्व काल में द्वादशी को तेल लगाने के कारण पुरुरवा को भी कुरूपता की प्राप्ति हुई थी. राजा पुरुरवा ने तब माघ के एक महीने तक गंगा तट पर निवास करते हुए तप और व्रत करते हुए भगवान का पूजन किया था. शुक्ल द्वादशी को जब सूर्य देव मकर राशि में थे तब भगवान ने पुरुरवा को दर्शन दिया और अपने शंख से उनके शरीर पर जल गिराया जिससे उन्हें पुन: कमनीय रूप की प्राप्ति हुई थी. महर्षि भृगु ने विद्याधर से कहा – हे विद्याधर कर्म की गति ऐसी ही है. तुम भी अपने रूप की प्राप्ति के लिए मणिकूट नदी के जल में माघ महीने में स्नान करो और एक महीने तक त्रिकाल भगवान की पूजा करो. जिस दिन माघ शुक्ल एकादशी आएगी उसी दिन तुम्हारे पाप क्षीण हो जायेंगे. फिर द्वादशी के दिन मैं तुम्हारा मन्त्रपूत कल्याणमय जल से अभिषेक करूंगा. इससे तुम्हे अपने पूर्व स्वरूप की प्राप्ति होगी.


विद्याधर! माघ अतिपवित्र पाप नाशक है. माघ सब व्रतों से बढकर है, यह सभी कामनाओ को पूर्ण करने वाला है. गंगासागर, काशी, प्रयाग, उज्जैन, पुष्कर तथा सभी नदी तीर्थों में माघ स्नान का अनंत फल प्राप्त होता है. दरिद्रता, पाप और दुर्भाग्य को धोने का माघ स्नान सर्वोत्तम अवसर है. सतयुग में तपस्या को, त्रेता युग में ज्ञान को, द्वापर में भगवान के पूजन को और कलियुग में स्नान को श्रेष्ठ कहा गया है.

महर्षि भृगु के वचन के अनुसार ही विद्याधर ने उनके आश्रम में रुक कर माघ महीने में स्नान किया और भृगु जी के अनुग्रह से अपने पूर्व रूप को पुन: प्राप्त किया.