
वैष्णव सम्प्रदाय में श्री राम की उपासना की सबसे प्राचीन परम्परा रामानंदी सम्प्रदाय की परम्परा है. रामानंदी परम्परा से ही राम लला का पूजन विगत 500 साल से होता आ रहा है. रामानंदी वैष्णव सम्प्रदाय के साधु संतों का सबसे शक्तिशाली अखाड़ा निर्मोही अखाड़ा माना जाता है. निर्मोही अखाड़ा के महंथ ने कहा है कि ” पूजा-अर्चना की जो पद्धति अपनायी गई है, वह विशुद्ध रामानंदी परंपरा न होकर मिली-जुली पद्धति है. उनका कहना है कि 500 वर्षों से अधिक समय से रामनंदी परंपरा से रामलला की पूजा होती आई है, लेकिन उसके अनुसार नहीं किया जा रहा है.”
गौरतलब है कि राममन्दिर का आन्दोलन में निर्मोही अखाड़े का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि बाबर द्वारा मन्दिर तोड़े जाने के बाद निर्मोही अखाड़ा का गठन हुआ था जिसका प्रमुख उद्देश्य रामजन्मभूमि की मुक्ति था. इस अवसर पर निर्मोही के साथ निर्वाणी और दिगंबर अखाड़ा का भी गठन किया गया था. इनके गठन का श्रेय स्वामी बालानंदाचार्य को है. स्वामी बालानंदाचार्य रामानंदीय संप्रदाय के शीर्ष आचार्य थे और मध्य युग में सनातन संस्कृति पर हो रहे सतत आघात से रामोपासना और उसके मन्दिरों की रक्षा के लिए उन्होंने इन अखाड़ों की स्थापना की थी. निर्वाणी और दिगंबर को क्रमश: अयोध्या की हनुमानगढ़ी एवं तिरुपति बाला जी मंदिर का, जबकि निर्मोही को रामजन्मभूमि की गरिमा-महिमा स्थापित करने का दायित्व सौंपा गया था. रामजन्मभूमि आन्दोलन 500 साल पुराना है और उसे निर्मोही अखाड़ा ही लड़ता रहा है. आधुनिक समय में जब राममन्दिर आन्दोलन का प्रारम्भ 1885 में हुआ जिसमे निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवरदास ने सिविल जज के यहां वाद दाखिल कर रामजन्मभूमि के सम्मुख निर्मित राम चबूतरा पर मंदिर निर्माण की अनुमति मांगी. दूसरी तरफ 1934 में रामजन्मभूमि पर कब्जा छुड़ाने के प्रयास में निर्मोही अखाड़ा के महंत नरोत्तमदास एवं रामशरनदास की भूमिका रही.
सुप्रीम कोर्ट के जजों का जब राममन्दिर पर निर्णय आया कि रामजन्मभूमि मन्दिर क्षेत्र न्यास ट्रस्ट ही मन्दिर निर्माण और इससे सम्बन्धित सभी मुद्दों को देखेगा, तब निर्मोही अखाड़ा ने याचिका दायर कर पूजन की अनुमति मांगी थी. उस समय कोर्ट ने कहा कि यदि ट्रस्ट अनुमति देता है तो सम्प्रदाय पूजन कर सकता है. लेकिन भाजपा की सरकार थी और नरेंद्र मोदी पीएम तो आरएसएस ने उन्हें निकाल कर बाहर कर दिया. अब जबकि प्राणप्रतिष्ठा कर रहे हैं तब सम्प्रदाय के गुरु को निमन्त्रण पत्र तक नहीं भेजा गया. इससे निर्मोही अखाड़ा और वैष्णव संत काफी नाराज हैं.