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ज्योतिष शास्त्र में दिन को 8 प्रहरों में विभाजित करके तदनुसार कर्म के निर्देश दिए गये हैं. ज्योतिष एक काल की शुभता और अशुभता का निर्णय करने वाला शास्त्र है. इन प्रहरों के विभाजन का प्रमुख कारण देवताओं की उपासना है. सभी देवता की सभी काल में उपासना नहीं की जाती. उदाहरण के लिए प्रदोष काल में शिव की पूजा प्रशस्त है जबकि काली महाविद्या की उपासना रात्रि के तीसरे प्रहर से प्रारम्भ की जाती है. सांसारिक लोगों को धनआदि की प्राप्ति के लिए सुबह का प्रहर उषाकाल श्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि इससे वसुओं का सम्बन्ध है. वसुओं का भौतिक चीजों पर अधिपत्य है. उषाकाल में सूर्य को अर्घ्य देने से धन की वृद्धि होती है. इन 8 प्रहरों में दिन के 4 प्रहर और रात के 4 प्रहर शामिल हैं. हरएक प्रहर लगभग 3 घंटे का होता है लेकिन यह सूर्य के अनुसार बदलता रहता है. सर्दियों में रातें लम्बी होने से उत्तर भारत में एक रात का पहर लगभग 3.5 घंटे और दिन का प्रहर लगभग 2.5 घंटे का हो जाता है. गर्मियों में इसके विपरीत रात का पहर लगभग 2.5 घंटे और दिन का प्रहर लगभग 3.5 घंटे का हो जाता है. एक प्रहर एक घटी 24 मिनट की होती है. प्रहर को याम भी कहते हैं. बड़े मन्दिरों में अष्ट प्रहर की सेवा को ‘अष्टयाम’ कहते हैं.

दिन के 4 प्रहर: पूर्वान्ह, मध्यान्ह, अपरान्ह और सायंकाल
रात के 4 प्रहर: प्रदोष, निशिथ, त्रियामा एवं उषा.
बौध धर्म में गौतम बुद्ध को रात्रि के चार यामों में चार आर्यसत्यों का ज्ञान हुआ था. रात्रि के प्रथम याम में उन्होंने पूर्वजन्मों की स्मृति रूपी प्रथम विद्या, द्वितीय याम में दिव्य चक्षु और तृतीय याम में प्रतीत्यसमुत्पाद का ज्ञान प्राप्त किया और अंतिम याम में सर्वधर्माभिसमय रूप सर्वाकारक प्रज्ञा अथवा संबोधि का उदय हुआ.

पहला पहर: शाम 6 बजे से लेकर रात 9 बजे तक के समय को रात्रि का पहला प्रहर कहा जाता है. इस प्रहर को प्रदोष काल भी कहा जाता है. इस प्रहर में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है.

दूसरा प्रहर: रात 9 बजे से लेकर 12 बजे तक को दूसरा प्रहर कहा जाता है. इस प्रहर में खरीदारी करना शुभ माना जाता है.

तीसरा प्रहर: रात के 12 से 3 बजे तक का समय तीसरा प्रहर होता है. यह प्रहर तन्त्र साधनाओं के लिए बेहतर होता है.

चौथा प्रहर: चौथा प्रहर भोर के 3 बजे से सुबह के 6 बजे तक लगता है. ब्रह्म महूर्त इस प्रहर में ही विशेष काल है. यह रात का अंतिम प्रहर होता है.

पांचवां प्रहर: सुबह 6 बजे से लेकर 9 बजे तक के समय को पांचवा प्रहर होता है. इस प्रहर में पूजा-अर्चना करना चाहिए.

छठा प्रहर: सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक का समय छठा प्रहर कहलाता है.

सातवां प्रहर: दोपहर 12 बजे से शाम 3 बजे तक की अवधि को सातवां प्हरर बोला जाता है. इस प्रहर में अभिजित मुहूर्त होता है.

आठवां प्रहर: शाम 3 बजे से लेकर शाम 6 बजे की अवधि को आठवां प्रहर कहा गया है.