मार्गशीर्ष माह यानि अगहन के महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी सबसे खास होती है. जिसे मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है . मोक्षदा एकादशी, जैसा नाम से ही स्पष्ट है यह मोह का नाश करने वाली और मोक्ष देने वाली है. द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान दिया था अत: इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है. मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली, कर्मयोग को स्थापित करने वाली गीता का उपदेश हुआ था. इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें कर्मों के बंधन से मुक्ति मिलती है. जो भी मोक्षदा एकादश व्रत को करता है उसके पापों का नाश होता है. इस दिन श्रीमद्भगवत गीता, भगवान श्रीकृष्ण और महर्षि वेद व्यास का विधिपूर्वक पूजन करके गीता जयंती उत्सव मनाना चाहिए. मोक्षदा एकादशी का व्रत कर इस दिन भगवद्गीता का पूरा पाठ करना चाहिए. इस एकादशी का व्रत रखने वाले जातक जीवनकाल में सभी सुख-सुविधाओं का आनंद प्राप्त करते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. मोक्षदा एकादशी का व्रत विधि-विधान व नियमानुसार रखा जाए तो भगवान विष्णु की कृपा हमेशा बनी रहती है.
मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 22 दिसंबर को सुबह 08 बजकर 16 मिनट पर शुरू होगी और 23 दिसंबर को सुबह 07 बजे समाप्त होगी. मुहूर्त शास्त्र में उदया तिथि मान्य है अतः 22 दिसंबर को मोक्षदा एकादशी मनाई जाएगी. वैष्णव 23 दिसंबर को व्रत रखेंगे, उनके लिए 24 दिसंबर को सुबह 6 बजकर 49 मिनट पर व्रत का पारण करना शुभ रहेगा.
मोक्षदा एकादशी पारण मुहूर्त : 07:10:49 से 09:14:41 तक 24, दिसंबर को
मोक्षदा एकादशी कथा –
एक समय गोकुल नगर में वैखानस नामक राजा राज्य करता था. एक दिन राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके पिता नरक में दुख भोग रहे हैं और अपने पुत्र से उद्धार की याचना कर रहे हैं. अपने पिता की यह दशा देखकर राजा व्याकुल हो उठा. प्रात: राजा ने ब्राह्मणों को बुलाकर अपने स्वप्न का भेद पूछा. तब ब्राह्मणों ने कहा कि- हे राजन! इस संबंध में पर्वत नामक मुनि के आश्रम पर जाकर अपने पिता के उद्धार का उपाय पूछो. राजा ने ऐसा ही किया। जब पर्वत मुनि ने राजा की बात सुनी तो वे चिंतित हो गए. उन्होंने कहा कि- हे राजन! पूर्वजन्मों के कर्मों की वजह से आपके पिता को नर्कवास प्राप्त हुआ है. अब तुम मोक्षदा एकादशी का व्रत करो और उसका फल अपने पिता को अर्पण करो, तो उनकी मुक्ति हो सकती है. राजा ने मुनि के कथनानुसार ही मोक्षदा एकादशी का व्रत किया और ब्राह्मणों को भोजन, दक्षिणा और वस्त्र आदि अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त किया. इसके बाद व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई.

