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पंचांग में हर महीने प्रदोषव्रत, मासिक शिवरात्रि और अमावस्या आती है लेकिन सभी महीने में पड़ने वाली ये तिथियाँ विशेष होती हैं. यह शिवभक्तों की विशेष तिथि है. वास्तव में ये महाप्रजापति के यज्ञानुष्ठान की ये शुभ तिथियाँ हैं और इनकी मासानुसार पूजन की ही महत्ता है. हर महीने में सूर्य देव वही नहीं होते, हर महीने के आदित्य अलग हैं, उनका स्वरूप अलग है. मार्गशीर्ष महीने की वैसे भी महत्ता ज्यादा ही है क्योंकि यह भगवान को विशेष प्रिय है उन्होंने इसे अपना स्वरूप कहा है. जाहिर है कुछ विशेषता तो होगी ? इसलिए मार्गशीर्ष महीने का प्रदोषव्रत, मासिक शिवरात्रि और अमावस्या भी विशेष फलदायी हैं .

प्रदोषव्रत और मासिक शिवरात्रि मुहूर्त –

मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वादशी तिथि 10 नवम्बर को सुबह 07:13 बजे तक है उपरांत त्रयोदशी शुरू है जिसमे सायं प्रदोष काल में शिव पूजन होता है. त्रयोदशी तिथि पड़ने पर प्रदोष व्रत किया जाता है. हर महीने में दो बार प्रदोष व्रत किए जाते हैं, पहला व्रत कृष्ण पक्ष में और दूसरा शुक्ल पक्ष में किया जाता है. उदया तिथि के अनुसार मार्गशीर्ष प्रदोष व्रत 10 दिसंबर को किया जाएगा. पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 25 मिनट से रात 08 बजकर 08 मिनट तक रहेगा। 
नवम्बर 11 को त्रयोदशी तिथि सुबह 07:10 बजे तक है उपरांत चतुर्दशी तिथि रहेगी जिसमे मासिक शिवरात्रि पूजा होगी. हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है. इस प्रकार, मार्गशीर्ष महीने में 11 दिसंबर को मासिक शिवरात्रि है. यह तिथि शिव-पार्वती के ब्याह की तिथि है इसलिए यह शुभ तिथि है. इस तिथि में उन महिलाओं और पुरुषों को आवश्य शिवपूजन करना चाहिए जिनका ब्याह नहीं हो रहा है या ब्याह में देरी हो रही है. भगवान आशुतोष और माता पार्वती का एक साथ पूजन विहित है और यही फलदायी होता है. मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है.

जिनकी शादी नहीं होती उन्हें शिवरात्रि के पूजन में माता पर्वती के समक्ष गोस्वामी तुलसीदास रचित यह स्तुति करनी चाहिए. यह बहुत लाभप्रद होता है –

जय जय  गिरिबरराज किसोरी ।  जय महेस मुख चंद चकोरी।
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनी दुति गाता।।

नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ  बेदु नहिं जाना।
भव भव बिभव पराभव करिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।

पतिदेवता   सुतीय  महुँ     मातु  प्रथम  तव  रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।।

सेवत  तोहि  सुलभ  फल चारी।  बरदायिनी पुरारि पिआरि।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।

मोर  मनोरथु  जानहु  नीकें। बसहु  सदा  उर पुर सबही कें।
कीन्हेउँ  प्रगट  न  कारन तेहीं। अस  कहि चरन गहे बैदेहीं।।

बिनय  प्रेम  बस  भई  भवानी। खसि  माल मूरति मुसुकानी।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरी हरषु हियँ भरेऊ।।

सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।|
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।

मनु  जाहिं  राचेउ  मिलिहि  सो  बरु सहज सुन्दर साँवरो।
करुना    निधान   सुजान    सीलु    सनेहु   जानत   रावरो।।

एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी  भवानिहि  पूजि  पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल   मंगल   मूल   बाम   अंग   फरकन   लगे।।

12 नवम्बर सुबह 06:24 बजे तक चतुर्दशी है उपरांत अमावस्या प्रारम्भ रहेगी. यह अमावस्या भी विशेष होगी. इसके लिए अगला लेख देखें ..