
सूर्य की प्रसन्नता और शांति के लिए नित्य पूजा और सूर्य को प्रातः काल में अर्घ्य देना चाहिए। यदि सूर्य की महादशा से बहुत परेशान हों या पुत्रोत्पत्ति में बाधा हो तो सूर्य का विधिवत अनुष्ठान करना या करवाना चाहिए। सूर्य की खराब दशा से परेशान जातक यदि कुछ भी करने में सक्षम नहीं है तो उसे सूर्य के मंत्र का जप प्रतिदिन करना चाहिए, ऐसा करने से उसे सूर्य की कृपा मिलती है। स्वास्थ्य खराब रहता हो तो सूर्य की उपासना ही सबसे प्रशस्त है। भागवत पुराण में बताया गया कि भगवान सूर्य रोग से मुक्ति और आयुष्य प्रदान करने वाले हैं। सूर्य मंत्र ‘ऊं घृणि: सूर्य आदित्य’ का जप दृढ़ विश्वास से जपें, भगवान सूर्य आपकी पूजा से प्रसन्न जरुर होंगे। गायत्री साधना से भी सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। किसी मनुष्य के प्रति अपने मन में किसी भी तरह की द्वेष भावना भी न रखें। पिता का विशेष पूजन और सम्मान करें, पिता की आज्ञा का पालन करें। ऐसा करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और जातक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। सूर्य के नीच होने या दू:स्थान में होने पर या सूर्य की खराब दशा में निम्नलिखित उपाय करने चाहिए –
१- हरिवंशपुराण का श्रवण करना चाहिए ।
२- माणिक्य धारण करना चाहिए।
३- ब्राह्मण को गेहूँ, सवत्सा, गाय, गुड़, तांबा, सोना एवं लाल वस्त्र का दान करना चाहिए।
४-पिता और बड़े बूढों का सम्मान करें ।
५- रविवार को सूर्य की प्रीति के लिए व्रत और कथा करें ।
६-प्रतिदिन सूर्य को ताम्बे के लोटे से अर्घ्य प्रदान करें ।
7- यदि सूर्य सन्तान दोष उत्पन्न करने वाला हो तो श्री राम का पूजन और राम नाम का जप भी बहुत प्रभावशाली माना गया .
8-सूर्य स्तुति का पाठ भी अत्यंत लाभकारी होता है.
अर्घ्य प्रदान करने की विधि –
भगवान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करने के लिए इन चार मन्त्रों में किसी का भी उपयोग किया जा सकता है अथवा सिर्फ गायत्री से भी अर्घ्य दिया जा सकता है जो शास्त्र विहित है –
प्रथम मंत्र- ॐ घृणि सूर्य आदित्य: ॐ
द्वितीय मन्त्र -ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात्
तृतीय मन्त्र -ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः
चतुर्थ मन्त्र- ‘ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
यह गायत्री मन्त्र वेद विहित है, इससे अर्घ्य दें और इसी मन्त्र से सूर्योपस्थान भी कर सकते हैं। भगवान सूर्य के अर्घ्यदान की विशेष महत्ता है। प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय के समय देना चाहिए अर्थात सात बजे से पूर्व देना चाहिए, बेहतर सदैव उदित सूर्य को अर्घ्य देना है। अर्घ्य देने के लिए रक्तचन्दनादि से मण्डल बनाकर तथा ताम्रपात्र में जल, लाल चन्दन, चावल या तिल, रक्तपुष्प और कुशादि डाल कर सूर्य मंत्र का जप करते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य दें ( यथासम्भव जल में प्रविष्ट होकर अर्घ्य अंजुली से देना चाहिए) या जल पात्र रख कर उसमे अर्घ्य देना चाहिए, अर्घ्य जल को बाद में तुलसी मूल में या पीपल मूल में डाल दें।
प्रातः पूर्व दिशा में अर्घ्य दें, मध्याह्न को उत्तर दिशा में और सायं को पश्चिम दिशा में अर्घ्य प्रदान करें। अर्घ्य प्रदान करते समय अंजुलि बनाएं तो अंगूठे को अलग हटा कर रखें, हथेली से सटा न हो, पात्र पकड़े तो हथेली के बीच पात्र रखें, अंगूठों को अलग हटा कर रखें। सुबह थोड़ा झुक कर खड़ा होकर अर्घ्य दें, दोपहर को सीधे खड़े होकर अर्घ्य प्रदान करें और सायं को बैठ कर अर्घ्य दें। सुबह और दोपहर को तीन बार अर्घ्य दें, सायं को एक बार अर्घ्य दें.
।। श्री सूर्य स्तुति ।।
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन ।।
त्रिभुवन – तिमिर – निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।
दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सुर – मुनि – भूसुर – वन्दित, विमल विभवशाली।
अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।
सकल – सुकर्म – प्रसविता, सविता शुभकारी।
विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥
जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।।