
पुराणों में ज्योतिष दैवी विज्ञान के रूप में स्थापित है। सूर्य की बारह संक्रांति होती हैं। लेकिन इन बारह संक्रांतियों में अलग अलग विशेषता है और उसका फल है। सूर्य देवलोक का द्वार है इसलिए सूर्य की हरएक गति बहुत महत्वपूर्ण है। सूर्य की इन बारह संक्रांतियों को पूजन, जप और दान के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। पद्मपुराण के अनुसार सूर्य की इन बारह संक्रांतियों में धनु, मिथुन, मीन और कन्या संक्रांति को षडशीति कहते हैं। वृष, वृश्चिक , कुम्भ और सिंह संक्रांति को विष्णुपदी कहते हैं। षडशीति संक्रांति में किये जप, तप, तर्पण, दान इत्यादि पुण्य का छियासी हजार गुना फल मिलता है जबकि विष्णुपदी संक्रांति में लाख गुना फल मिलता है।
दक्षिणायन की कर्क संक्रांति और उत्तरायण की मकर संक्रांति में किये गये पुण्यों का कोटि गुना फल प्राप्त होता है। सभी संक्रांतियों में मकर संक्रांति की अपरम्पार महिमा बताई गई है, इसमें किये गये सभी धार्मिक कृत्य अक्षय फल प्रदान करने वाले होते हैं। इस संक्रांति काल में किया गया दान, तर्पण, स्नान, जप और पूजन कोटि कोटि गुना फल प्रदान करने वाला होता है। यदि संक्रांति रविवार को या शुक्ल पक्ष की सप्तमी को पड़े तो इस काल में किया गया पुण्य अक्षय फल प्रदान करने वाला होता है।
पद्म पुराण में यह मंत्रात्मक सूर्य स्तोत्र बहुत प्रभावशाली कहा गया है. सूर्य के समक्ष इसका पाठ करने से राज्य और सुख की प्राप्ति होती है.
ॐ सहस्रबाहवे आदित्याय नमो नम: ।
नमस्ते पद्महस्ताय वरुणाय नमो नम:
नमस्तिमिरनाशाय सूर्याय नमो नम: ।
नम: सहस्रजिह्वाय भानवे च नमो नम:
त्वं च ब्रह्मा त्वं च विष्णु त्वं रुद्रस्त्वं च नमो नम: ।
त्वमग्निसर्वभूतेषु वायुस्त्वम च नमो नम: ।
सर्वग: सर्वभूतेषु न हि किंचित्वया बिना।
चराचरे जगत्यस्मिन सर्व देहे व्यवस्थित:
||ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:||
फलश्रुति-
य इदं पठते नित्यं तस्य पापं न विद्यते।
न रोगो न च दारिद्र्यं नावमानो भवेत्क्वचित्।।
अक्षयं लभते स्वर्गं सुखं राज्यं यशः क्रमात्।
महामंत्रं प्रवक्ष्यामि सर्वप्रीतिकरं परम्।।