
काल भैरव शिव का सर्वोत्तम भैरव रूप है. अष्टभैरव इनके ही विकार माने जाते हैं. जो भय का रवण करता है , भय से रक्षा करता है वह भैरव है. सबसे बड़ा भय क्या है? काल या मृत्यु सबसे बड़ा भय है. इससे काल भैरव रक्षा करते हैं. वेद में रूद्र रूप में जिनका गायन किया गया है वही काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हैं. ‘रोदयति इति रूद्र:” के अनुसार प्राणियों को कर्म फल देकर रुलाते हैं वो रूद्र है. आध्यात्म में मुख्य प्राणात्मक रूद्र है एवं अधिदैव में सुर्यात्मक एक रूद्र हैं. यजुर्वेद की काठक शाखा में कहा गया है कि “यत अरुजत तत रुद्रस्य रूद्रत्वन ” व्याधियों के उत्पादक होने से रूद्र की रूद्ररूपता कही गई है.
भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का भी प्रतिनिधित्व करते हैं. हिंदू धर्म में, भैरव को ‘दंडपाणि’ कहा गया है इनकी सवारी ‘स्वस्वा’ कुत्ता है. अष्टभैरव 1-असितांग-भैरव 2-रुद्र-भैरव 3-चंड-भैरव 4-क्रोध-भैरव 5-उन्मत्त-भैरव 6-कपाली-भैरव 7-भीषण-भैरव तथा 8 -संहार-भैरव इनके ही रूप हैं. बटुक भैरव को इनका बाल्य रूप माना जाता है.
‘शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शिव के रुधिर (रक्त) से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. काल भैरव का जन्मोत्सव अगहन अर्थात मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है. इस वर्ष यह 5 दिसम्बर को पड़ रही है. 5 दिसंबर को मध्यरात्रि 12 बजे भगवान कालभैरव का जन्मोत्सव अष्ट महाभैरव मंदिरों में मनाने की परंपरा है. उज्जैन में एकदिन बाद अर्थात 6 दिसम्बर कालभैरव की नगर में धूमधाम से सवारी निकलती है.

मार्गशीर्ष अष्टमी के दिन इनके बाल्यरूप बटुक भैरव की विशेष पूजा करनी चाहिए. काल भैरव दयालु और शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं. उज्जैन में इन्ही भैरव की जागृत प्रतिमा को मदिरा पान कराया जाता है . भैरव बाबा को सात्विक भोग में हलवा , खीर , गुलगुले ( मीठे पुए ) , जलेबी अत्याधिक पसंद हैं. मिठाइयों का भोग भैरव बाबा को लगाकर काले कुत्ते को खिलाना चाहिए और काली उड़द की दाल से बने दही भल्ले , पकोड़े आदि का भोग भैरव को लगाकर किसी गरीब को आवश्य खिलाना चाहिए.
मुहूर्त –
पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण की अष्टमी तिथि 4 दिसंबर 2023 को रात 09 बजकर 59 मिनट पर शुरू होगी और इस तिथि का समापन 6 दिसंबर 2023 को प्रात: 12 बजकर 37 मिनट पर होगी. काल भैरव की पूजा रात्रि काल में उत्तम मानी गई है लेकिन गृहस्थ को भैरव की सामान्य पूजा सदैव मन्दिर में जाकर करनी चाहिए. घर में न करें.
गृहस्थ के लिए पूजा का समय – सुबह 10.53 – दोपहर 01.29
निशिता काल मुहूर्त – 5 दिसंबर, रात 11.44 – देर रात 12.39, 6 दिसंबर
विशेष उपाय –
सर्वप्रथम भैरव का विधिवत पंचोपचार पूजन करें. तदुपरांत भैरव को दीप दान करें .
विधि- दीपक बड़ा रखें. कामना के अनुसार दीपक लें. सभी कामनाओं के लिए ताम्बे का दीपक लें. वशीकरण के लिए स्वर्ण का दीपक, विद्वेषण के लिए लोहे का, मारण के लिए मिट्टी का, उच्चाटन के लिए कांस्य का , मोहन के लिए पीतल का और अभी कार्य की सिद्धि के लिए ताम्बे का दीपक इस्तेमाल करें.
बत्ती –सभी शांति कर्म , सभी शुभ कर्म के लिए सफेद बत्ती लगायें, पीला स्तम्भन में और रक्त वर्ण की बाती वशीकरण में प्रयोग करें.
घी- गोघृत शान्ति-पुष्टि कर्म, धन आदि के लिए, भैस का घी मारण में प्रयोग होता है, ऊंट का विद्वेषण में, बकरी का घी उच्चाटन में..तो यह सब छोड़ गो घृत लें. घी 6 अंगुल परिमाण में हो तो अच्छा अन्यथा पर्याप्त हो कि सुबह तक जले..
बाती की संख्या- तीन तीन सूत मिलाकर एक बाती बनाएं. और बाती 1, 5, 7, 21 की संख्या में लगायें. बेस्ट है पांच बाती बड़े ताम्बे के दीपक में लगायें. घी कटोरे में भर कर दीपक बनाएं.
अब सिंदूर से षटकोण बनाएं और भीतर त्रिकोण बनाएं. त्रिकोण के मध्य में चावल रख कर उसके ऊपर दीपक रखें. दीपक का मुख उत्तर की तरफ रखें. अब संकल्प लेकर उसे जला दे. तदन्तर काल भैरव का अवाहन कर पंचोपचार पूजन करें. पूजन के उपरांत इस मन्त्र से बलि भोग निवेदन करें. उस पर लाल पुष्प रख दे –
ॐ ह्रीं बटुकनाथ देवीपुत्र कपिलजटाभारलसाद्भास्वर त्रिनेत्र ज्वालामुखरित सर्वविघ्ननिवारय सर्वजन वशमानय वशमानय सकलशास्त्रच्छन्दोनिबद्धाम वाणीं मे कुरु कुरु इमं यथोकल्पितं बलिं गृह्ण गृह्ण हुम् फट स्वाहा .
इस प्रकार बोल कर उस भोग पर जल डाल दे और तीन ताली बजा कर निवेदन कर दें. कालभैरव से प्रार्थना करें प्रणाम करें.