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आदि शंकराचार्य वैदिक समय मार्ग तन्त्र के प्रवर्तक हैं. उन्हें यह विद्या अपने गुरु गोविन्दपाद से प्राप्त थी और आचार्य गोविन्दपाद को भगवान गौड़पादाचार्य से प्राप्त थी. भगवान गौड़पाद द्वारा लिखित “माण्डुक्यकारिका” को आदि शंकराचार्य ने ब्रह्मास्त्र की तरह बौधों पर प्रयोग किया था और उन्हें जड़समेत उखाड़ कर सनातन धर्म की पुन: स्थापना की थी. भगवान गौड़पाद शक्ति के परमउपासक थे. उनके द्वारा लिखित सुभगोदय तथा श्रीविद्यारत्नसूत्र वैदिक श्रीविद्या सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है. आदि शंकराचार्य को अद्वैत सिद्धि के बाद शिव-शक्ति का वरदान प्राप्त हुआ था और उन्होंने उनके आशीर्वाद से कुछ चालीस रहस्यमय सूत्र “सौन्दर्यलहरी” में लिखे जो मंत्रात्मक हैं. ऐसा माना जाता है कि ये सूत्र उन्हें कैलाश पर्वत पर शिव के मुख से प्राप्त हुए थे.

इन श्लोक-सूत्रों का यंत्रात्मक और मंत्रात्मक प्रयोग दक्षिण भारत के श्रीविद्या उपासकों ने सम्भवत: विद्यारण्य मुनि द्वारा लिखे ग्रन्थों और शिक्षाओं के बाद शुरू किया. यह दक्षिण भारत में सात्विक वैदिक मार्ग का अनुगमन करने वालों द्वारा प्रयुक्त होता रहा है और इसका लाभ लोगों को मिलता रहा है. यहाँ एक सम्मोहन प्रयोग दिया जा रहा है-

प्रयोग विधि –

सर्वप्रथम शुभ दिन और महूर्त चुनें. उस शुभ दिन और मुहूर्त में निम्नलिखित यंत्र बनाएं. शुक्ल पक्ष में इसकी उपासना करना चाहिए इस यंत्र को सीसे पर बनाना चाहिए लेकिन यदि न बना सकें तो चांदी की प्लेट पर बनाएं और रेखाओं, त्रिशूल और बीज मन्त्र को सिंदूर से रक्ताभ करें. तदन्तर संकल्प लें और गुरु पूजन करें. यहाँ गुरु स्वयं आदि शंकराचार्य हैं अथवा जो वर्तमान शंकराचार्य हैं उनको भी गुरु मान कर और उनका आशीर्वाद लेकर यह पूजन सम्पन्न कर सकते हैं. गुरु पूजन के बाद त्रिपुरासुन्दरी का विधिवत पूजन करें और उनकी अनुज्ञा प्राप्त करें. पूजन के बाद रक्तचन्दन की माला या स्फटिक की माला से नीचे दिए मंत्रात्मक श्लोक का 1000 जप प्रतिदिन करें. प्रतिदिन जप के उपरांत एक पाठ ललिता सहस्रनाम का करें. यह जप चालीस दिन तक करें. जप पूर्ण होने के बाद उसका दशांश हवन करें. यदि यंत्र को सीसे पर बनाये हैं तो उसे लॉकेट में जड़वा कर पहन लें. यह जबर्दस्त सम्मोहन को उत्पन्न करेगा. श्लोक में जो कहा गया है वही घटित होगा. यदि सीसे पर निर्मित नहीं किया है तो भी चिंता की बात नहीं यह प्रभाव अवश्य उत्पन्न करेगा और आपकी मनोवांक्षित ईच्छा पूर्ण होगी. यह ध्यान रहे, अनुचित लाभ उठाने के उद्देश्य से यह प्रयोग करने वाले का सर्वनाश हो जाता है.

नरं वर्षीयांसं नयनविरसं नर्मसु जडं
तवापाङ्गालोके पतितमनुधावन्ति शतशः ।
गलद्वेणीबन्धाः कुचकलशविस्रस्तसिचया
हठात् त्रुट्यत्काञ्च्यो विगलितदुकूला युवतयः ॥

हे देवी ! वयोवृद्ध, देखने में कुरूप और क्रीडा में जड़ मनुष्य भी आपकी कृपा दृष्टि पड़ने मात्र से कामदेव की तरह सौन्दर्य प्राप्त कर लेता है. उसके पीछे सैकड़ों युवतियां भागने लगती हैं, उनकी बेणी के बंधन खुलने लगते हैं, कुच कलशों पर से चोली फटने लगती है, मेखला हठात खुल गई सी लगती है और साड़ी शरीर से सरकने लगती है.

मन्त्र जप करते समय जिसका वशीकरण करना हो उसका इस श्लोक के अनुसार ही ध्यान करना चाहिए.