
ग्रहों के वक्री होने को बहुत सनसनी की तरह कामर्शियल ज्योतिषी प्रचारित करते हैं जिससे लोग बहुत भ्रमित हो जाते हैं कि न जाने क्या हो जाय ! जन्म कुंडली में वक्री ग्रह का प्रभाव वैसे ही रहता है जैसे मार्गी ग्रह का प्रभाव होता है. वक्री ग्रह क्या है? पहले यह समझ लीजिये. ग्रह जब अपनी सामान्य गति से भ्रमण करता है तो उसको मार्गी कहते हैं. जब कोई ग्रह थोड़ी तीव्र गति से चलता है तो उसको अतिचारी कहते हैं और जब इस परिवर्तित गति में वह पीछे की ओर जाता प्रतीत होता है तो उसको वक्री कहते हैं. वास्तव में ग्रह सदैव मार्गी रहते हैं वे कभी पीछे या उल्टे नहीं चलते, बल्कि उनकी पृथ्वी के सापेक्षिक गति के कारण ऐसा केवल ऐसा आभास होता है कि वे पीछे जा रहे हैं. इसी आभास को ग्रहों का वक्री होना कहते हैं. यह ठीक वैसे ही है जैसे एक स्थिर ट्रेन में बैठे व्यक्ति को दूसरी पटरी पर तेजी से गुजरती ट्रेन के कारण अपनी ट्रेन चलती हुई दिखाई देती है. नासा के अनुसार ” Retrograde motion is an APPARENT change in the movement of the planet through the sky. It is not REAL in that the planet does not physically start moving backwards in its orbit. It just appears to do so because of the relative positions of the planet and Earth and how they are moving around the Sun. Normally, the planets move west-to-east through the stars at night. This is referred to as prograde motion. However, peridiocally the motion changes and they move east-to-west through the stars. We call this retrograde motion. The retrograde motion continues for a short time and then the motion switches back to prograde. This seemingly strange behavior is easily understood within the context of a Sun-centered (heliocentric) solar system. The explanation for retrograde motion in a heliocentric model is that retrograde occurs roughly when a faster moving planet catches up to and passes a slower moving planet.”
वक्री ग्रह के बारे में कुछ पूर्व में हुए प्रसिद्ध ज्योतिष के विद्वानों का मत दिया जा रहा है –
‘होरा सार’ के अनुसार वक्री गुरु बहुत अधिक बलवान माना गया है परन्तु इस स्थिति में वह अपनी शत्रु राशि में नहीं होना चाहिए. यहां यही प्रभाव विपरीत होने लगता है.
‘जातक तत्त्व’ के अनुसार भी शुभ राशि तथा शुभ स्थान में स्थित वक्री ग्रह राज्य तथा धन सुख के प्रतीक हैं. शत्रु राशि में यही ग्रह घाटा देते हैं. वक्री ग्रह की दशा-अन्तर्दशा आदि व्यक्ति को मान-सम्मान दिलवाती है तथा धन, सुख आदि प्रदान करती है. ‘सारावली’ के अनुसार शत्रु राशिगत वक्री ग्रह अकारण भ्रमण देने वाला तथा अरिष्टकारक सिद्ध होता है.
‘जातक पारिजात’ में स्पष्ट लिखा है कि वक्री ग्रह के अतिरिक्त शत्रु भाव में किसी अन्य ग्रह का भ्रमण अपना एक तिहाई फल खो देता है.
‘उत्तर कालामृत’ के अनुसार वक्री ग्रह के समय की स्थिति ठीक वैसी हो जाती है, जैसे कि ग्रह के अपने उच्च अथवा मूल त्रिकोण राशि में होने से होती है. ‘फलदीपिका’ में मंत्रेश्वर महाराज का कथन है कि ग्रह की वक्री गति उस ग्रह विशेष के चेष्टा बल को बढ़ाती है.
उपरोक्त सभी वक्तव्य आंशिक सत्य है और अनेक मतवैभिन्यता है. अक्सर देखा जाता है कि जन्म कुंडली में ग्रह वक्री नहीं है लेकिन अपनी वक्री अवस्था में वह शुभ परिणाम दे देता है. यदि लग्न कुंडली में वक्री ग्रह है तो अक्सर अपनी वक्री अवस्था में लाभ दिला देता है. इन दोनों स्थितियों में उसके वक्री होने के कारण यह फल नहीं होता बल्कि उसके गोचर का यह फल होता है. निम्लिखित जातिका की कुंडली में बृहस्पति वक्री है और महादशा में है. बृहस्पति गोचर में वक्री होकर 6th हॉउस में है और इसी दशा में एक सप्ताह पहले इनकी क्लास-वन की सरकारी नौकरी की परीक्षा का रिजल्ट आया जिसमे ये उत्तीर्ण हो गईं हैं.

‘कृष्णामूर्ति के अनुसार भी लग्न कुंडली में वक्री ग्रह का परिणाम वैसा ही होता है जैसे मार्गी ग्रह का परिणाम होता है. उनका मानना है कि प्रश्न के समय संबंधित ग्रह का वक्री ग्रह के नक्षत्र अथवा किसी सम्बन्ध में रहना नकारात्मक उत्तर का प्रतीक है. यदि कोई संबंधित ग्रह वक्री नहीं है, परन्तु वक्री ग्रह के नक्षत्र में प्रश्न के समय स्थित है, तो वह कार्य तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक कि वह ग्रह वक्री है.
वेंकटेश की ‘सर्वाथ चिन्तामणि’ में वक्री ग्रह की दशा- अन्तर्दशा फल का सुन्दर विवरण मिलता है. मंगल ग्रह यदि वक्री है तथा उसकी दशा अथवा अन्तर्दशा चल रही हो, तो व्यक्ति अग्नि, शत्रु आदि भय से त्रस्त रहेगा. वह ऐसे में एकान्तवास अधिक चाहेगा. वक्री शनि अपनी दशा-अन्तर्दशा में अपव्यय करवाता है. व्यक्ति के प्रयासों में सफलता नहीं मिलने देता. ऐसा शनि मानसिक तनाव, दुःख आदि देता है.
यदि गोचर में ज्यादा वक्री ग्रह हों तो उसका फल अशुभ बताया गया है जबकि अनेक जन्म कुंडलियों में तीन वक्री ग्रह होने से उन्हें राजयोग भी होता है.