चंद्रमा से निर्मित योगों में केमद्रुम योग एक बहुत अशुभ योग है. जिसकी कुंडली में केमद्रुम योग होता है वह पुत्र कलत्र से हीन इधर उधर भटकने वाला, दुःख से अति पीड़ित, बुद्धि एवं खुशी से हीन, मलिन वस्त्र धारण करने वाला, नीच एवं कम उम्र वाला होता है. यह योग दुर्भाग्य लाता है.
केमद्रुमे भवति पुत्र कलत्रहीनो देशान्तरे ब्रजति दुःखसमाभितप्तः।
ज्ञाति प्रमोदनिरतो मुखरो कुचैलो नीचः भवति सदा भीतियुतश्चिरायु।।
यदि जन्मकुंडली में चंद्रमा से दूसरे व 12वें भाव में कोई भी ग्रह नहीं हो तो उस स्थिति में केंमद्रुम नामक योग का निर्माण होता है. यदि लग्न और चन्द्रमा से केंद्र में शुभ ग्रह हो तो यह योग भंग माना जाता है. केमद्रुम योग के कई प्रकार बताये गये हैं. जिस जातक की जन्म कुंडली में केमद्रुम योग बनता है वह मानसिक रूप से विचलित और उद्दिग्न रहता है. ये जातक अशुभ प्रभाव में अपने ही गलत कार्यो और निर्णय के कारण अपना सब कुछ नष्ट कर लेते हैं. आचार्यों के अनुसार केमद्रुम योग के प्रभाव से समस्त राजयोग नष्ट हो जाते हैं.
केमद्रुम योग निर्माण की कुछ प्रमुख स्थितियां इस प्रकार वर्णित है-
१- रात्रि का जन्म हो, चन्द्रमा निर्बल हो और पाप ग्रह की राशि या नवांश में हो, पाप ग्रह से युत हो और दशमेश से दृष्ट हो
२-चन्द्रमा नीच नवांश में हो, खल ग्रह के साथ हो, नवमेश से दृष्ट हो तो केमद्रुम योग होता है
३-रात्रि का जन्म हो , क्षीण चन्द्र हो और चन्द्रमा अपनी नीच राशि में हो तो केमद्रुम योग होता है
४- यदि नवमेश लग्न से द्वादश हो और द्वादश स्वामी बलहीन होकर द्वितीय में हो और कोई पाप ग्रह तृतीय में हो तो केमद्रुम योग होता है.
केमद्रुम योग भंग –
१- यदि चंद्रमा केंद्र में विद्यमान हो और साथ में कोई दूसरा शुभ ग्रह विद्यमान हो या उससे दृष्ट हो तो केमद्रुम योग की अशुभता नष्ट हो जाती है.
२- यदि केंद्र में शुक्र हो और गुरु से दृष्ट हो तो योग भंग होता है
३- यदि चंद्रमा स्वयं उच्च या उच्च नवांश या अधिमित्र के नवांश में विद्यमान हो और गुरु दृष्ट हो उस स्थिति में भी केमद्रुम योग का प्रभाव कम हो जाता है.
कुछ ज्योतिष विद्वानों के अनुसार चन्द्रमा से चतुर्थ और दशम में शुभ ग्रह न हो तो यह योग बनता है या नवांश में भी यही स्थिति हो तो केमद्रुम होता है अन्यथा नहीं होता. अनुभव से देखा गया है कि चन्द्रमा यदि पाप ग्रह से पीड़ित हो, क्षीण हो और उससे दूसरे और द्वादश कोई ग्रह न हो, उस पर कोई शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो केमद्रुम योग होता है और जातक जिन्दगी भर दुखी रहता है, इससे ऊबर नहीं पाता. यदपि की योग भंग बताया गया है लेकिन केमद्रुम योग पूरी तरह निरस्त नहीं होता, उसका प्रभाव बहुत कम हो जाता है. इस योग को लग्न और चन्द्रमा दोनों से ही देखना चाहिए.

