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ब्रह्मा जी ने दिति को गर्भवती होने के बाद मदनद्वादशी का व्रत करने और इस दौरान अनेक प्रकार की हिदायतें दी और अनेक चीजों को वर्जित किया था. ये सभी काम गर्भवती महिलाओ को नहीं करने चाहिए. ये निषेध निम्नलिखित हैं –

1-गर्भवती महिला को संध्या काल में कभी भोजन नहीं करना चाहिए.

2-नदी, तालाब या जल में कभी डुबकी नहीं लगानी चाहिए. नदी में स्नान करे तो लोटे से स्नान करे. आधुनिक समय में टब में डूब कर स्नान न करे.

3-वृक्ष की जड़ में विश्राम न करे या रात्रि न बिताये

4- गर्भवती महिला कभी झाड़ू, मुसल और उखल के समीप न बैठे

5- कभी भूल कर भी सांप की वामी या बिल के पास न बैठे या न खड़ी हो

6- कभी भी उन्मना न रहे. उन्मना अवस्था में होने पर गीत या संगीत सुने

7-कभी नखों से जमीन न कुरेदे, या राख पर लकीर न खींचे या कोयले से कुछ न लिखे

8-हर समय न सोये, न कोई कसरत करे

9-अंगार, भस्म, अस्थि , कपाल इनपर कभी पैर न रखे.

1०- कभी किसी से कलह न करे, अशुभ वचन न बोले और न कभी अंगडाई ले

11-कभी खुले बाल न रखे, अशुद्ध न रहे और कभी उत्तर की तरफ सिर करके न सोये

12-कभी गीले वस्त्र धारण करके न रहे, कभी नंगी न रहे और न अधिक हास्य करे

13-नित्य मंगल कर्म करे और सर्वौषधियों से मिश्रित गुनगुने पानी से स्नान करे

14- रक्षा विधान करते हुए सुंदर श्रृंगार कर शास्त्रानुसार देवपूजन इत्यादि करे. पर्वों में सदैव् दान करे.

15-गर्भवती महिला सिर्फ पूजन करे और पति तथा गुरु की सेवा करे.

ऐसा करने से दुरात्माएं छिद्र न पाकर गर्भिणी का कोई अहित नहीं कर पाते. कथानुसार जब दिति गर्भवती हुई तो ये बातें निषेध करके कश्यप ऋषि चले गये. दिति के गर्भ में उस समय इंद्र का दुश्मन था. प्रसव के तीन दिन पहले दिति उपरोक्त बातों को भूल गई और बिना पैर हाथ धुले दिन में ही खुले बाल किये सो गई. छिद्र देख इंद्र ने वज्र से उसके गर्भ के सात टुकड़े कर दिए थे.
ऐसा करने से गर्भवती महिलाओं के गर्भ का नाश नहीं होता, उन्हें उत्तम और दीर्घायु सन्तान प्राप्त होती है.