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अक्षय पात्र की यह कथा महाभारत, स्कन्द पुराण सहित अन्य पुराणों और काशी खंड में भी द्रौपदादित्य के सम्बन्ध में यह कथा मिलती है। द्रौपदादित्य सूर्य मन्दिर विश्वनाथ मन्दिर के पास अक्षय वट के नीचे स्थित है। स्कन्द पुराण के अनुसार पांडवों की दुर्दशा देख कर द्रौपदी ने काशी में सूर्य की घोर तपस्या करके अक्षय पात्र को प्राप्त किया था।

महाभारत की कथा के अनुसार अक्षय पात्र युधिष्ठिर को प्राप्त हुआ था। बारह वर्ष के कठोर वनवास के समय पांडवों की मुलाकात कई तरह के साधु-संतों से होती रहती थी। पांडव जहाँ भी कुटिया बनाकर रहते थे उनके यहां भ्रमणशील साधु-संतों के जत्थे के जत्थे उनसे मिलने के लिए या कुटिया में प्रवास करने के लिए आते थे। पांचों पांडवों सहित द्रौपदी के समक्ष सदैव यह प्रश्न होता था कि वे इन सैकड़ों महात्माओं के लिए भोजन कहां से कराएं? भिक्षाटन द्वारा यह सम्भव नहीं था। तब एकदिन उनकी इस चिंता को देख ऋषि धौम्य ने युधिष्ठिर को सूर्य के 108 नामों से उनकी आराधना करने का उपदेश दिया था। युधिष्ठिर ने इन नामों से भगवान भास्कर का जप और पूजन किया। युधिष्ठिर की तपस्या से पर भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर युधिष्ठिर को दर्शन दिया।

सूर्य भगवान को अर्घ्य दे कर युधिष्ठिर ने उन्हें प्रणाम किया और कहा- हे भगवन! मेरे यहाँ हजारों की संख्या ब्राह्मण,तपस्वी, ऋषिगण आते रहते हैं। भिक्षाटन से गुजरा करने वाला मैं हजारों लोगों को भोजन कराने में असमर्थ पाता हूं। मैं आपसे अन्न की अपेक्षा रखता हूं।किस युक्ति से हजारों लोगों को खिलाया जाए, ऐसा कोई साधन मांगता हूं। तब सूर्यदेव एक ताम्बे का पात्र देकर कहा- हे ‘युधिष्ठिर! तुम्हारी कामना पूर्ण होगी। मैं १२ वर्ष तक तुम्हें अन्नदान करूंगा। यह ताम्बे का पात्र मैं तुम्हे देता हूँ। तुम्हारे पास फल, फूल, शाक आदि चार प्रकार की भोजन सामग्रियां तब तक अक्षय रहेंगी, जब तक कि द्रौपदी भोजन नहीं कर लेती।’

अक्षय पात्र प्रदान कर सूर्य देव अंतर्ध्यान हो गये। ताम्बे का वह अक्षय पात्र लेकर युधिष्ठिर अति प्रसन्न हुए, उनकी समस्या का समाधान हो गया था। अक्षय पात्र पाने के बाद द्रौपदी सभी को भोजन परोसकर ही भोजन ग्रहण करती थी, जब तक वह भोजन ग्रहण नहीं करती थी, पात्र से भोजन समाप्त नहीं होता था। यह भगवान सूर्य का दिया हुआ अक्षय पात्र था। सूर्य ने वास्तव में द्रौपदी को ही यह पात्र प्रदान किया था क्योंकि द्रौपदी अग्नि कुंड से प्रकट हुई थी। संसार सभी अग्नियों का स्रोत सूर्य देव ही हैं.