Spread the love

कमजोर चन्द्रमा को ठीक करने के अनेक उपाय ज्योतिष में वर्णित हैं. आयुर्वेद शास्त्र ज्योतिष को ही आधार मानता है और तदनुसार इलाज करता है. आयुर्वेद में औषधियों का निर्माण भी ज्योतिष के विशेष योगों में किया जाता था. आयुर्वेद में ग्रह दोषों द्वारा उत्पन्न रोगों की चिकित्सा के अनेक उपाय वर्णित हैं साथ में अन्य ज्योतिषीय उपाय भी वर्णित है. चन्द्रमा के दोष से अनेक मानसिक व्याधियां उत्पन्न होती हैं इसके लिए औषधीय स्नान की तरह ही ये उपाय बताये गये हैं. इन उपायों से चन्द्रमा ठीक होता है, ये उपाय काफी कारगर माने गये हैं –

हंसोदक –
तप्तं तप्तांशुकिरणै: शीतं शीतांशुरश्मिभि:।
समन्तादप्यहोरात्रंगस्त्योदयनिर्विषं ।
शुचि हंसोदकं नाम मलज्जिजलं ..नाभिष्यन्दि न वा रूक्षं पानादिश्वमृतोपमं ।।
दिन में स्वभाविक रूप से सूर्य किरणों तप्त और रात्रि में चन्द्र की शीतल किरणों से सुशोभित और अगस्त्य तारा के उदय होने से दोषरहित जल हंसोदक है. यह अमृत के समान जल चन्द्रमा के अनेक दोषों का निवारण करने वाला है.
यहाँ अगत्स्य तारा के उदय के समय इस जल के सेवन का जिक्र है. अगस्त्य तारा सितम्बर से दिसम्बर तक उदित रहता है. इस समय इसका सेवन करना चाहिए. शरदपूर्णिमा की खीर इसी कारण लाभप्रद कही गई है.

चन्द्रविहार-

चन्दनोशीर कर्पूरमुक्ता स्रग्वसनोज्जवल: ।
सौधेषु सौधधवलां चन्द्रिकां रजनीमुखे ।।
रात्रि के आगमन के एक दो घंटे के बाद अर्थात रजनीमुख में स्वेत चन्दन, खस तथा कपूर का लेप लगा कर, मोतियों की माला धारण करें और श्वेत वस्त्र पहन कर घर की छत पर एक दो घंटे शांतिपूर्वक बिताएं. चन्द्रमा निर्मल हो, अपनी रश्मियों से पूर्ण हो. इस समय में चन्द्रमा के बीज मन्त्रों का जप करने से अत्यधिक लाभ होता है. यह उपाय अनेक मनोविकारों को खत्म करता है.

यह विशेष रूप से शरत ऋतु में ही कारगर है लेकिन अन्य ऋतुओं में भी जब रात्रि प्रशांत हो, हवाएं मद्धम चलती हों और चन्द्र करणों में उज्ज्वलता हो तब इसे करें. इससे वर्षा ऋतु में बढ़े पित्त दोषों का भी शमन होता है . आज अनेक तरह के आधुनिक मानसिक विकारों से लोग त्रस्त हैं, ऐसे में यह चन्द्रविहार सप्ताह में एक बार भी करने से काफी लाभप्रद होगा. चन्द्रविहार के समय संगीत का आयोजन भी करना चाहिए.