 
									एक व्यापारी के यहाँ नौका चालन द्वारा व्यापार होता था. एक बार दोनों बड़े लड़के नावों में माल भर कर विदेश बेचने ले गये. लौटते हुए परदेश से दूसरा माल लाने की योजना थी.
रास्ते में समुद्री तूफान आया. नावें उलट गयीं. उनमें रखे दो तख्तों के सहारे वे किनारे आ लगे. जान भर बच पायी. उस क्षेत्र में तीन यक्षिणियों का शासन था एक का नाम था वासना, दूसरी का तृष्णा, तीसरी का अपूर्णा. वे सुन्दर युवकों की तलाश में रहतीं कुछ दिन के भोग -विलास से उन्हें खोखला कर देती और इसके बाद दूर के सिंह-बाघों से भरे जंगल में उन्हें बेमौत मरने के लिए छोड़ देतीं. यक्षिणियों ने उन युवकों का भी इसी दृष्टि से उपभोग किया. उन्हें हिदायत कर दी कि घूमना हो, तो महल के इर्द-गिर्द ही घूमें दक्षिण दिशा में भूलकर भी न जावें.
दोनों भाई उनके पंजे से छूटकर घर जाने की फिक्र में थे, सो दाँव लगते ही दक्षिण दिशा की ओर तेजी से चल पड़े. दूर जाने पर एक जर्जर अस्थि-कंकाल रूप में युवक रोता मिला. उसने बताया यक्षिणियों ने खोखला करके यहाँ मरने के लिए छोड़ दिया है. रहस्य की बात यह है कि वे पीछा करे, मधुर बातें करें, तो भी उनकी ओर मुड़कर न देखना, अन्यथा वे भारी प्रतिशोध लेगी. ऐसा ही हुआ. यक्षिणियाँ पीछे दौड़ती हुई आई. एक भाई उनसे वार्ता करने लगा, उसे ले जाकर कुछ ही दूर पर मार डाला जिसने मुड़कर नहीं देखा, वह उनके जादू से बच गया और किसी प्रकार घर आ गया.
लिप्साएँ यक्षिणियाँ हैं. जो उनके कुचक्र में फँसता है, वह जान गँवाता है.


 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			