कोई भी ग्रह शकट भेदन पृथ्वी पर बड़े उथलपुथल, युद्ध, विनाश लाता है विशेषकर मंगल और शनि जैसे ग्रह. शकट भेदन का प्रसंग महाभारत में आया है और पुराण में प्रसिद्ध प्रसंग दशरथ कृत स्तोत्र में आता है. राजा दशरथ इंद्र के समान प्रतापी थे, उनके राज्य की प्रजा सुखी जीवन यापन कर रही थी, सर्वत्र सुख और शांति थी. उनके राज्यकाल में एक दिन ज्योतिषियों ने शनि को कृत्तिका नक्षत्र के अन्तिम चरण में देखा और गणित करके कहा कि अब यह शनि अवश्य ही रोहिणी नक्षत्र का भेदन कर जायेगा. शनि का रोहणी शकट में जाना देवता और असुर दोनों ही के लिये कष्टकारी और भय प्रदान करनेवाला है तथा रोहिणी-शकट-भेदन से बारह वर्ष तक अत्यंत दुःखदायी अकाल पड़ता है. उन्होंने यह बात राजा दशरथ को बताया. राजा दशरथ ने विज्ञ ब्राह्मणों से पूछा: हे ब्राह्मणों! इस समस्या का कोई समाधान शीघ्र ही मुझे बताइए. ब्राह्मणों में श्रेष्ठ वशिष्ठ ने कहा : हे राजन, शनि के रोहिणी नक्षत्र में में भेदन होने से प्रजाजन सुखी कैसे रह सकते हें. इस योग के दुष्प्रभाव से तो ब्रह्मा एवं इन्द्रादिक देवता भी रक्षा करने में असमर्थ हैं.
यह सुनकर दशरथ बड़े क्रोधित हुए और रथ पर सवार हो अस्त्र शस्त्र लिए शनि से युद्ध के लिए निकल पड़े. राजा दशरथ बाण संधान कर शनि के सामने युद्ध के लिए डटकर खड़े हो गए. अपने सामने देव-असुरों के संहारक अस्त्रों से युक्त दशरथ को खड़ा देखकर शनि थोड़ा डर गए और हंसते हुए राजा से कहने लगे: हे राजेन्द्र! तुम्हारे जैसा पुरुषार्थ मैंने किसी में नहीं देखा, क्योंकि देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और सर्प जाति के जीव मेरे देखने मात्र से ही भय-ग्रस्त हो जाते हैं.
हे राजेंद्र! मैं तुम्हारी तपस्या और पुरुषार्थ से अत्यन्त प्रसन्न हूँ. अतः हे रघुनन्दन! जो तुम्हारी इच्छा हो वर मांग लो, मैं तुम्हें वर दूंगा. राजा दशरथ ने कहा: हे सूर्य-पुत्र शनि-देव! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मैं एक ही वर मांगता हूँ कि जब तक नदियां, सागर, चन्द्रमा, सूर्य और पृथ्वी इस संसार में है, तब तक आप रोहिणी शकट भेदन कदापि न करें. मैं केवल यही वर मांगता हूँ और मेरी कोई इच्छा नहीं है. ऐसा वर माँगने पर शनि ने एवमस्तु कहकर वर दे दिया.
यह एक कथा है. शनि रोहिणी शकट भेदन हजारों वर्षो में कभी एक बार करता है. गणेश दैवज्ञ के अनुसार –
गवि नगकुलवे खगोस्य चेद्यमदिगिषु: खगशरांगुलाधि’क:।
कभशकटमसौ भिनत्यसृक्क्षनिरुडुपो यदि चेज्जनक्षय: ।।
यदि कोई ग्रह वृष राशि के 17 अंश में हो अर्थात रोहिणी तृतीय पाद में हो और उसका शर दक्षिण दिशा में हो और पचास अंगुल से ज्यादा (लगभग 2 डिग्री ) हो जाय तो मंगल, शनि और चन्द्रमा में से कोई ग्रह रोहिणी शकट का भेदन करता है, जो लोको का नाश करने वाला होता है. अन्य ग्रहों के शकट भेदन की सम्भावना नहीं रहती.
महाभारत में शनि द्वारा रोहिणी को पीड़ित करने का प्रसंग है जो युद्ध की चेतावनी के रूप में देखा गया है.
प्रजापत्यम हि नक्षत्रं ग्रहस्तिक्ष्णो महाद्युति :।
शनैश्चर: पीडयति पीडयन्न प्राणिनोधिकं ।। -उद्योग पर्व
हे मधुसुदन ! भयंकर तीक्ष्ण महाद्युतिमान् शनीच्चर संसार को पीड़ित करने के लिए रोहिणी का भेदन करने की तरफ अग्रसर है, मंगल ज्येष्ठा में वक्री होकर अनुराधा की तरफ बढ़ रहा है जो प्रिय जनों, मित्रों के महाविनाश का द्योतक है.

भीष्म धृतराष्ट्र से कहते हैं कि तीनों लोको में विख्यात और पूजनीय अरुंधती वशिष्ठ के पीछे चली गई है, रोहिणी नक्षत्र को शनि पीड़ित कर रहा है यह शुभ नहीं है-
ये चैषा विश्रुता राजस्त्रैलोक्ये साधु सम्मता।
अरुंधती तयाप्येष वशिष्ठ: पृष्ठत: कृत: ।।
रोहिणी पीड्यन्नेष स्थिति राजन्नशनैश्चर:।
व्यावृतं लक्ष्म सोमस्य भविष्यति महदभ्यम।। -भीष्म पर्व
हे राजन ! शनि रोहिणी शकट की तरफ जा रहा है. चन्द्रमा मृग में अपने निश्चित पथ से मुड़ गया है, यह भविष्य में महान भय का कारण बन रहा है !
यदि राहु पुनर्वसु नक्षत्र से आगे के आठ नक्षत्रों में हो तो चंद्रमा भी रोहिणी शकट भेदन करता है, यदि उपरोक्त स्थितियां उपस्थित हों. लेकिन मंगल और शनि का पात यदि पुनर्वसु इत्यादि आठ नक्षत्रों में हो तो भी ये रोहिणी भेदन नहीं कर पाते. इनका रोहिणी शकट भेदन युगान्तरों में होता है. शकट भेदन की स्थिति ग्रह नक्षत्रों के एक वृहत्तर संयोजन या पुनर्संयोजन के बिना सम्भव नहीं होता, आकाश मंडल में ध्रुव के सापेक्ष इनकी स्थितियां बदलती है. महाभारत में इस सन्दर्भ में सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की भूमिका की तरफ भी इंगित किया गया है. महाभारत के प्रसंग में अरुंधती का वशिष्ठ के पीछे जाने का प्रसंग आया है. गौरतलब है कि वशिष्ठ और अरुंधती द्वितारा (binary star) हैं, यह ऋषियों को हजारों वर्ष पहले ज्ञात था जबकि आधुनिक खगोल शास्त्रियों नें इसे 1650 में घोषित किया कि ये बाईनरी स्टार हैं. इसमें कुल 4 तारे बताये गये हैं. यह दोनों द्वितारे दो अलग तारे लगते हैं, जिन्हें अंग्रेज़ी में “माइज़र ए” (Mizar A) और “माइज़र बी” (Mizar B) कहा जाता है. इन दोनों द्वितारों में माइज़र ए अधिक चमकीला तारा है. अनुमान लगाया गया है कि यह दोनों तारे- अरुंधती और वशिष्ठ एक दूसरे की एक परिक्रमा करते हैं. अनुमानत: ये हर 200 वर्ष में ये एक परिक्रमा पूरी कर लेते हैं. इन्हें बिग-डायपर (ursa major) या बड़े सप्तऋषि मंडल के हत्थे पर खुली आँखों से देखा जा सकता है.
हिन्दू धर्म में शादी के बाद पति पत्नी को अरुंधती को दिखाने का रिवाज वैदिक काल से ही है. अरुंधती ने तप करके भगवान विष्णु से सतीत्व का आदर्श बनने का वर मांगा था. अरुंधती ने एक वर और भी माँगा था कि मनुष्य जन्म लेते ही काम भाव को प्राप्त न हो, उम्र के साथ ही उनमें काम भाव का संचार हो. भगवान के दिए इस वर के कारण ही मनुष्यों में युवावस्था में काम भाव का संचार होता है. हिन्दू चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को अरूंधती व्रत करते हैं और वशिष्ठ-अरुंधती का विधि पूर्वक पूजन करते हैं.

