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मांसाहार को लेकर हमने कुछ एक लेख साक्ष्य के साथ लिखे हैं जिसे सर्च करके पढ़ा जा सकता है. यहाँ मांसाहार का प्रकरण एकबार फिर उठ रहा है. एक प्रश्नकर्ता ने ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य से प्रश्न पूछा – क्या मांस खाने वालों की पूजा ईश्वर स्वीकार नहीं करते ? इस प्रश्न के उत्तर में जो कुछ ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद (Swami Avimukteshwaranand Saraswati) जी ने स्कन्दपुराण का साक्ष्य देते हुए कहा, वह अमान्य है. वीडियो नीचे है देखें. हमारे अनुसार हिन्दू शास्त्र में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है जिसमें यह कहा गया हो कि मांस खाने वालों की पूजा ईश्वर स्वीकार नहीं करते. यदि वे पुराणों को ही साक्ष्य मानते हैं तो स्कन्द पुराण से पूर्व लिखे गये महर्षि पराशर विरचित विष्णु पुराण को भी साक्ष्य मानेंगे जिसमें स्वयं भगवान विष्णु ही कहते हैं कि मांस-मदिरा द्वारा देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं . हमने ये आर्टिकिल लिखा था, यहाँ पढ़े इसके इतर स्कन्द पुराण से बहुत प्राचीन मार्कण्डेयपुराण पुराण में इसका सन्दर्भ भरा पड़ा है. अन्य सभी पुराणों में इसका सन्दर्भ मिल जायेगा.

हमारे वर्तमान शंकराचार्य लोग पुराणपंथी होकर अपने पद से च्यूत हो गये से लगते हैं. आचार्य लोग वेदांत भूल से गये हैं ऐसा लगता है. उन्हें मूल शास्त्रों (श्रुतियों) का साक्ष्य देते हुए जनता को इसका सही उपदेश करना चाहिए. यह भी बताना चाहिए कि सत्य या ज्ञान के बावत पुराण साक्ष्य नहीं हैं. यदि स्कन्दपुराण को साक्ष्य मानते हैं तो विष्णु पुराण को भी साक्ष्य मानना होगा.

मनुस्मृति में भी यह नहीं कहा गया है कि मांस खाने वाला पापी है बल्कि वहां खाने का जिक्र है .

यदि कोई द्विज मांस ईश्वर को अर्पित कर खाया जाय तो उसमे दोष नहीं होता. यह मनु महाराज मनुस्मृति में कहते हैं. अब जबकि द्विज को भी निषेध नहीं है तो अन्य जातियों को तो एकदम नहीं है.

मांस क्यों वर्जित है इसका सिर्फ विशेष आध्यात्मिक कारण है और एक स्तर के बाद यह बाधक हो जाता है, इसको पाप से न जोड़ें और व्यवहारिक बात करें जैसा यहाँ मनु कर रहे हैं.

  • Acharya Rajesh Shukla ‘Garg’