 
									पुखराज(Yellow Sapphire) गुरु बृहस्पति का रत्न है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पुखराज रत्न को धारण करने से व्यापार, व्यवसाय, बुद्धि- ज्ञान और धन की वृद्धि होती है. ब्रिटिश संग्रहालय के एक प्राचीन ग्रन्थ में लिखा है कि “पुखराज पागलपन में बहुत लाभदायक होता है. इसको धारण करने वालों को भूत आदि से भय नहीं होता.” यह हीरा, पद्मराग(ruby) और नीलम के बाद सबसे बहुमूल्य रत्न माना जाता है. पुखराज को पुष्पराग, पीत मणि, जीवरत्न, याकूत, पुखराज और पीत स्फटिक नाम से भी जाना जाता है. पुखराज को पीला समझा जाता है जबकि असली पुखराज पीला नहीं होता, इसका असली शुद्ध स्वरूप रंगहीन होता है. आजकल घुमेरा स्फटिक, धुमियत पुखराज, स्काच पुखराज, पीला ओलिवीन (कोसोलाईट) को पुखराज कह कर बेच देते हैं जबकि ये पुखराज नहीं होते.

रासायनिक दृष्टि से पुखराज फ़्लुआन सिलिकेट से बनता है जिसमे फ़्लोरिन की मात्र 15 से 20 प्रतिशत तक हो सकती है. इसमें जल की मात्र भी पर्याप्त होती है जिसके कारण इसका रंग जल की तरह ही पारदर्शी होता है. 
पीले और शेरीशराब की सी आभा वाले पुखराज अधिक प्रचलित हैं जबकि पारदर्शी रंगहीन पुखराज थोड़े दुर्लभ हैं और बहुत महंगे मिलते हैं. कुछ ठग गुलाबी पुखराज बेचते हैं जिसको कृत्रिम प्रक्रिया से बनाया गया होता है. पुखराज  का काला धंधा बाजार में खूब चल रहा है, असली पुखराज कह कर बेचते हैं जो पुखराज होता ही नहीं है. रत्नों की पहचान उसकी मणिभ रचना से की जाती है. पुखराज हरितोपल (ओलिविन ) ऋजुतिर्यक समूह के रत्न हैं. पुखराज इस समूह के रत्नों में अलग है, इसके मणिभ रवे त्रिभुज या प्रिज्म के आकार के होते हैं. 
पुखराज प्राय: ग्रेनाईट, नाइस तथा पैग्मेटाईल शिलाओं में मिलता है. इन शिलाओं में दबे हुए पुखराज के साथ टूर्मलीन , स्फटिक भी मिलते हैं. परन्तु पुखराज इनसे बहुत भारी होता है. रूस-साईंबेरिया से मिलने वाले पुखराज नीले-भूरे रंग के होते हैं. ब्राजील की खान में मिलने वाले पुखराज श्रेष्ठ होते हैं. श्रीलंका से मिलने वाले पुखराज पीला, हल्का रंग या रंगरहित होते हैं इन्हें ‘जल रत्न’ के नाम से भी जाना जाता है. रोडेशिया की खानों से भी सुंदर पुखराज मिलते हैं.

पुखराज की पहचान – 
शुद्ध पुखराज के आठ गुण होते हैं. हाथ पर रखने पर इसमें गुरुता मिलती है, यह वजनी होता है. पुखराज की लुक या छवि स्निग्ध होती है,उसमे धब्बे नहीं होते, वह परत रहित होता है, उसके दाने बड़े होते हैं, उसकी आभा खिले हुए कनेर के फुल की तरह होती है, छूने पर काफी चिकना होता है. यदि पुखराज को पत्थर पर घिसें तो यह और चमक जाता है और उस पर खरोच नहीं आती. चौबीस घंटे तक दूध में या धूप में रखने पर यदि क्षीणता एवं फीकापन न आए तो वह शुद्ध है. पुखराज को थोड़ा गर्म करने पर बीच में लाल रंग आता है. यदि ध्यान से देखें तो उसमे मणिभ जैसा शंकु के आकार दिखते हैं, यदि नहीं दिखता तो पुखराज नकली है. सफेद पुखराज को अल्कोहल में रखने पर यह हीरे की तरह चमकता है. शुद्ध पुखराज को रगण कर बिजली उत्पन्न की जा सकती है. इसमें विद्युतीय गुण हैं इसलिए प्राचीन भारत में वैद्य महिला को प्रसूति के समय इसको रगण कर उसके हाथ में देते थे जिससे उसको डिलीवरी में सहूलियत होती थी. 
पुखराज के बारे रत्न शास्त्र में लिखा गया है –
पुष्परागं गुरुस्निग्धं स्वच्छं स्थूलं समं मृदु। 
कर्णिकारप्रसूनाभं मसृणं  शुभमष्टधा ।।
श्रीलंका से प्राप्त पुखराज गर्म करने पर रंगहीन हो जाता है. रूस से प्राप्त पुखराज धूप में फीका हो जाता है इसलिए इसे संग्रहालय में ढंक कर रखते हैं. 

नकली पुखराज में उसकी चमक में पीत रंग उजागर नहीं होता, छूने पर बालू की तरह खरखरा लगता है, रूखापन लिए होता है, पीलेपन में कालिमा मिली होती है, मुनक्का के रंग का होता है, लाल-पीले रंग मिश्रित होते हैं, पीला-सफेद मिश्रित पांडु रंग का होता है, काले रंग की बूंद बूंद सी वाला होता है.
शुद्ध पुखराज की अच्छे लैब में परीक्षा करवानी चाहिए. इसका आपेक्षिक गुरुत्व 3.65 होता है और वर्तनांक 1.618 होता है जिसकी जांच refractometer से की जा सकती है. यदि पुखराज का refraction 1.66 के लगभग नहीं है तो वह पुखराज नहीं है.


 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			