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गर्भाधान के नीचे मोटे मोटे 15 ज्योतिषीय सूत्र दिए जा रहे हैं. ज्योतिष के विद्वानों के अनुसार स्त्री की कुंडली में चन्द्र राशी से अनुपचय ( १ . २ , ४, ५, ७, ८ , ९, १० ) में गोचर वश चन्द्र हो और मंगल से दृष्ट हो तब समय गर्भधारण का उपयुक्त होता है. पुरुष की कुंडली में चन्द्रमा उपचय (3, 6, 10, 11) स्थान में हो और उसे गुरु देखता हो तब गर्भाधान करे.
लेकिन गर्भाधान का दिन और समय में ये निम्नलिखित दोष न हो-
१- गंडांत  न हो ( अश्लेषा का अंत , मघा का प्रारम्भ, ज्येष्ठा का अंत , मूल का प्रारम्भ और, रेवती का अंत, अश्विनी का प्रारम्भ ), गंडांत में लग्न भी न पड़े ( कर्क का अंत, सिंह का प्रारम्भ , वृश्चिक का अंत, धनु का प्रारम्भ , मीन का अंत, मेष का प्रारम्भ )
२- अपने जन्म नक्षत्र से ७ वां नक्षत्र न हो
३- अपना जन्म नक्षत्र न हो
४-अश्विनी , भरणी , मघा , मूल, रेवती नक्षत्र में लग्न और चन्द्र न हो
५-व्यतिपात , वैधृति , परिघ योग का उत्तरार्ध न पड़े
६- माता पिता का श्राद्ध दिन न हो
७-जन्म राशि या लग्न राशि से अष्टम राशि का लग्न न हो  
८- लग्न में पाप ग्रह न हो, लग्न में गुरु , शुक्र, बुध कोई हो (ये वशिष्ठ कहे गए हैं ) जो अपनी राशि में हो , या शुभ राशि में हो
९- पाप नक्षत्र में चन्द्र न हो
१०-भद्रा करण न हो
११ -षष्ठी तिथि न हो
१२-चतुर्दशी , अमावस्या , पूर्णिमा की संक्रांति, अष्टमी न हो
१३- रिक्ता तिथि न हो
१४-संध्या का समय न हो (सुबह की संध्या या सायं की ) क्योकि संध्या में गर्भाधान होने से असुर जन्म लेते हैं . संघ्या भी गंडांत है .१५-रविवार , मंगलवार , शनिवार न हो  ( इन दिनों में कुछ नक्षत्र में जन्मी लडकी विषकन्या होती है ..जिन्दगी भर दुखी रहती है)
 

स्त्री के १६ रात्रि का मासिक धर्म होता है. प्रारम्भ की चार रात्रि छोड़ देना चाहिए. बाद की १२ रात्रि में ( छठी , आठवी , बारहवी , चौदहवी और सोलहवी ) रात्रि पुत्र देने वाली होती हैं. गर्भाधान के लिए शुभ नक्षत्र -रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, स्वाती, अनुराधा, उत्तराषाढ, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा और उत्तरभाद्रपद शुभ कहे गये हैं. गर्भाधान लग्न वह चुनना अच्छा रहता है जिसमे त्रिकोण में शुभ ग्रह हों और तीसरे, छठवें और ग्यारहवें पाप ग्रह हों. पुत्र के लिए लग्न और चन्द्रमा की ओज राशि चुनना चाहिए.