महर्षि दधीचि के पुत्र महर्षि पिप्पलाद रुद्रावतार हैं, वे महान वैदिक ऋषि हैं। देवासुर संग्राम में जब महर्षि दधिची ने अपनी हड्डियों का दान कर दिया तो उनकी पत्नी सुवर्चा सती होने को उद्धत हो गईं। उस समय आकाशवाणी हुई कि उनके गर्भ में महर्षि दधीचि के ब्रह्मतेज से भगवान शंकर का अवतार होगा। अत: उसकी रक्षा करना आवश्यक है। यह सुनकर सुवर्चा पास ही स्थित पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गई जहां उन्होंने एक सुंदर बालक को जन्म दिया। पीपल के पेड़ के नीचे जन्म होने के कारण ब्रह्माजी ने उनका नाम पिप्पलाद रखा और सभी देवताओं ने उनके सभी संस्कार पूर्ण किए। महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी सुवर्चा दोनों ही भगवान शिव के परम भक्त थे। शिव के आशीर्वाद से पिप्पलाद का सुवर्चा के गर्भ से अंशावतार के रूप में जन्म हुआ।
पिप्पलाद को बचपन से ही माता-पिता का वियोग झेलना पड़ा था। इससे पिप्लाद ऋषि बड़े दुखी थी। एक दिन उनके आश्रम में देवर्षि नारद आये। देवर्षि नारद से महर्षि पिप्पलाद ने पूछा -” भगवन ! यह मेरे किस कर्म का फल है कि बचपन से ही मुझे माता-पिता का वियोग प्राप्त हुआ है ? ” देवर्षि नारद ने बताया कि शनि के प्रभाव से उन्हें अनेक दुःख प्राप्त हुए और शनि की क्रूर दृष्टि ही मातृ-पितृ के वियोग का कारण बना है। यह सुन कर पिप्पलाद को बड़ा क्रोध आया और कहने लगे की यह शनि नवजात शिशुओं को भी नहीं छोड़ता है। यदि उसे इतना अहंकार है तो मैं उसके अहंकार को मिट्टी में धूलधूसरित कर दूंगा। महातपस्वी ऋषि ने अपने तपबल से शनि को ग्रहमंडल से नीचे गिरा दिया। तब देवताओं सहित ब्रह्मा जी वहां उपस्थित हुए और उनके क्रोध को शांत किया। ब्रह्माजी ने समझा बुझा कर शनि को पुन: मंडल में स्थापित करवाया। स्थापित करने से पूर्व पिप्पलाद ने शनि से वचन लिया कि वह 16 वर्ष तक के बालकों को पीड़ित नहीं करेंगे। 
आद्यप्रभृति बालानां वर्षादोषषोडशाद ग्रह ।
पीड़ा त्वया न कर्तव्या एष में समय: कृत:।।
उस समय से शनि सोलह वर्ष के बाद ही अपने दुष्प्रभाव को प्रकट करता है। महर्षि पिप्पलाद का नाम लेने और पीपल की प्रदक्षिणा करने से शनि शांत होता है। शिवपुराण में कहा गया है कि गाधि, कौशिक और महर्षि पिप्प्लाद का स्मरण करने से शनि जनित पीड़ा दूर होती है।
गाधिश्च कौशिकश्चैव पिप्प्लादो महामुनि ।
शनैश्चरकृतां पीडां नाशयन्ति स्मृतास्त्रय: ।।
महर्षि पिप्पलाद वैदिक ऋचाओं के द्रष्टा, अथर्वेद की पैप्पलाद संहिता के रचयिता, और प्रश्नोपनिशद के उपदेश हैं। पुराण कथाओं में कुछ आख्यान हैं , कुछ ऐतिहासिक कथाएं है और कुछ आध्यात्मिक अर्थ को बताने के लिए रची गईं कथाएं भी हैं इसलिए सब कुछ लिटरल नहीं लेना चाहिए। यह पैप्पलाद संहिता के रचयिता का आख्यान है जो उनके तप बल की महिमा का आख्यान करता है और बताता है कि शनि का प्रकोप जप-तप से खत्म किया जा सकता है।
सोलह वर्ष की आयु तक शनि क्यों मनुष्यों को पीड़ित नहीं करता? ये है कारण !
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