जन्म कुंडली के अनुसार ही व्यक्ति को सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। सब कुछ कर्मणा यथावत घटित होता रहता है। जन्म कुंडली को दैवज्ञ से दिखा कर, समय चक्र को समझकर व्यक्ति अनेक मुसीबतों से बच जाता है। अरिष्ट कब होगा? कैसे होगा? किन दशाओं में होगा? यह कुंडली स्पष्ट बता देती है। यदि अरिष्ट ( रोग, मृत्यु इत्यादि या मरण सम दुःख ) की बात करें तो जन्म कुंडली में सर्वप्रथम अष्टम, षष्टम और द्वादश स्थगित ग्रहों की दशाएं जातक के लिए बड़ी कष्टप्रद होती हैं। इनमें द्वादश स्थित ग्रह या उसके स्वामी की दशा में हर प्रकार की हानि, मानसिक कष्ट, हस्पताल, पागलपन इत्यादि होते हैं, जबकि अष्टमेश या अष्टम स्थित ग्रहों की दशा में दुर्घटना, अकस्मात बड़ी परेशानी में घिरना, मृत्यु इत्यादि हो सकता है। षष्टम हॉउस के ग्रहों के स्वामी या उसमे स्थित ग्रहों की दशा में रोग, कर्ज, झगड़ा, आर्थिक नुकसान , कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना इत्यादि होते हैं।
इसके इतर निम्नलिखित ग्रहों की दशाओं में जातक को निर्धनता, बेरोजगारी, कष्ट, दुःख, अपमान और मृत्यु तक होने की सम्भावना रहती है –
१- राशि संधि में स्थित ग्रहों की दशा विकट रोग की दशा हो सकती है। यदि ग्रह राशि के अंतिम अंशो में हो तो मृत्यु तक दे सकता है।
२-अष्टम, षष्टम और द्वादश स्थगित ग्रहों की दशाएं महान कष्टकारी होती हैं।
३-जन्मकालिक दशा से चौथी, पांचवीं, छठवीं, सातवीं दशा क्रम से शनि , मंगल और राहु की हो तो ये दशाएं मृत्युकारक होती हैं। तीसरी दशा यदि नीच गृह की हो, पांचवीं यदि शत्रु भाव की हो, आठवीं अस्त ग्रह की दशा हो तो ये महान कष्ट का कारण बनती हैं। ये महादशा स्वामी यदि पाप ग्रह से सम्बन्धित हों तो विशेष कष्ट प्रदान करते हैं। 
 
४- विपत और प्रत्यरि तारा की दशाएं समान रूप से कष्टप्रद होती हैं। वध तारा की दशा भी आठ प्रकार से मारक होती है। यदि ये पाप ग्रह हों तो एक तो करेला दूसरे नीम चढ़ा वाली बात चरितार्थ हो जाती है।
५-अष्टम हाउस का द्रेष्काण पति जिस भाव में स्थित हो उस भाव राशि में अथवा द्रेष्काण के स्वामी के नवांश राशि में जब गोचर का शनि जाये तो जातक की मृत्यु सम्भव है।
६- विचारणीय भाव से अष्टम के स्वामी, बाइसवें द्रेष्काण का स्वामी, शनि, मांदी स्थित राशि के स्वामी, उस भाव के नवांश के स्वामी, उस भावेशों के अधिशत्रु, अष्टक वर्ग में बिंदु रहित राशि में स्थित ग्रह की दशा मारक होती है।
७-एकादश हाउस के स्वामी से युत या सप्तमेश से दृष्ट ग्रह अथवा अष्टमेश से युक्त ग्रह की दशा मृत्यु कारक होती है। नीच हुए अष्टमेश से दृष्ट सप्तमेश की दशा निःसंदेह प्राण ले सकती है।
८- अष्टमेश यदि छठे, बारहवें या आठवें हो तो ऐसे अष्टमेश की दशा में जब षष्टमेश या उसमे स्थित ग्रह या द्वादशेश या उसमे स्थित ग्रह की दशा चलेगी तो मृत्यु हो सकती है या मरण सम दारुण दुःख मिल सकता है।


 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			