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गुरु बृहस्पति जन्म कुंडली में सबसे महत्वपूर्ण ग्रहों में शामिल है। ये प्राकृतिक रूप से धर्म कारक, सन्तानकारक और धन कारक हैं। कुछ आचार्य गुरु को ही वास्तविक सुख कारक मानते हैं क्योकि यह चन्द्रमा की राशि में उच्च के होते हैं। बृहस्पति का चन्द्रमा से एक अनोखा रहस्यमय सम्बन्ध हैं। बृहस्पति से चन्द्रमा केंद्र या त्रिकोण में हो तो यह सम्बन्ध राजयोगकारी होता है। यह गजकेसरी राजयोग के नाम से प्रसिद्ध है।
केन्द्रे देवगुरौ लग्नाच्चन्द्राद्वा शुभदृग्युते ।
नीचास्तारिगृहैर्हीने योगोऽयं गजकेसरी
गजकेसरीसञ्जातस्तेजस्वी धनवान् भवेत् ।
मेधावी गुणसम्पन्नो राजप्रियकरो नरः।।:
यदि बृहस्पति चंद्रमा से केंद्र भावों में स्थित है और किसी क्रूर ग्रह से संबंध नहीं रखता है और न इनमे से कोई नीच आदि स्थिति में हो तो गज-केसरी योग बनता है। गज-केसरी योग हो तो वह दयालु प्रवृत्ति होता है और वह दूसरों के प्रति स्नेह व विनम्रता का भाव रखता है। ये जातक धार्मिक होते हौं, इनकी वेद और पुराण में आपकी गहरी रुचि रहती है और इनका धार्मिक ज्ञान अच्छा होने की वजह से लोग इनसे मार्गदर्शन लेते हैं। इन जातकों के पास पास चल और अचल संपत्ति के रूप में बहुत सारा धन होने की संभावना होती है। इनका संबंध उच्च वर्ग के लोगों के साथ होता है। ये सभी तरह की भौतिक वस्तुओं का सुख प्राप्त करते हैं।
वहीं यदि बृहस्पति से चन्द्रमा अशुभ स्थान अर्थात अष्टम- षष्टम हो तो जातक के लिए अशुभ हो जाता है। ऐसा गुरु जातक के सुख को नष्ट करता है विशेष रूप से स्त्री के सुख का नाश करता है। स्त्री का सुख उसका घर है इसलिए उसको घर का सुख प्राप्त नहीं होता। ये जातक हमेशा दुखी रहते हैं। एक दूसरी स्थिति बनती है जिसके  बारे में ज्योतिष शास्त्र कहता है –
क्वच्चित क्वचित्त भाग्य परिच्युत: सन पुनः पुनः सर्वमुपैति भाग्यं ..

जब गुरु से चंद्रमा अष्टम हो तो कभी सितारा बुलन्द हो जाता है कभी बिल्कुल गिर जाता है। ऐसे जातक के ह्रदय में दुःख का ऐसा कांटा लगा होता है कि उससे उबारना मुश्किल होता है।
इस बात की सत्यता की सैकड़ों कुंडलियों की जांच पड़ताल करने के बाद सही सिद्ध होती है।