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चिरोन एक धूमकेतु है जिसे १९७७ में चार्ल्स कोवल ने खोजा था. इसका नाम ग्रीस के एक चिकित्सक चिरोन (Chiron) के नाम पर रखा गया. चिरोन एक न्याय प्रिय और बुद्धिमान मिथकीय centaur था जिसे कोरोनस ( शनि) का पुत्र माना जाता है. ग्रीक मिथकों में चिरोन एक चिकित्सक है जो वनस्पति और औषधि विज्ञान का पिता माना गया है.

ग्रीक कथा के अनुसार अपोलो ने इसे चिकित्सक बनाया. यह ऐसा चिकित्सक माना गया है जो खुद को ही अपनी चिकित्सा से ठीक नहीं कर पाया था. इस धूमकेतु को भी पाश्चात्य ज्योतिषियों ने अपने ज्योतिषीय भविष्यवाणियों  का आधार बनाया है. चिरोन की तरह एक और धूमकेतु लिलिथ भी पाश्चात्य ज्योतिष में महत्वपूर्ण हो गया है. चिरोन की स्थिति शनि और यूरेनस की कक्षा के बीच मानी गई है, यह एक अंडाकार कक्षा में घूमता है और अपनी कक्षा में घूमते हुए शनि और यूरेनस की कक्षाओं को काटता है. भारतीय ज्योतिष ग्रन्थों में भी अनेक धूमकेतुओं का वर्णन मिलता लेकिन इन्हें भविष्यवाणी में इस तरह ग्रह के रूप में नहीं देखा गया है. इनके स्वरूप, रंग और उदय के समय का भी वर्णन किया गया है और बताया गया है कि इनके उदय के पृथ्वी पर समय किस तरह उत्पात होते हैं, कई बार विध्वंशक स्थिति बन सकती है. महाभारत युद्ध के समय भी धूमकेतुओं को देख कर युद्ध की भविष्यवाणी की गई है .

चिरोन का कारकत्व – यह जातक के प्रारम्भिक जीवन में मिले गहरे भावनात्मक जख्मों की तरफ ईशारा करता है. चिरोन एक आध्यात्मिक भैषज है इसलिए यह इन घावों को भरने के लिए प्रेरित करता है. यह किस भाव और राशि में है उसके अनुसार अपना प्रभाव दिखाता है, उसकी स्थिति के अनुसार जातक अपने भावनात्मक जख्मों को भरने का उपाय कर सकता है. कई महिलाएं बलात्कार से मिले जख्मों को अपनी लघु कथाओं या उपन्यासों में कहानी के द्वारा भरने का प्रयास करती हैं तो उसमें कारक चिरोन होता है. वर्तमान चिकित्सा प्रणाली में भी यह अब स्वीकार किया जा चूका है कि अनेक मानसिक रोगों की चिकित्सा सिर्फ भौतिक स्तर पर दवाओं से नहीं की जा सकती है. पाश्चात्य ज्योतिषी चिकित्सा के इस पहलू में चिरोन का विशेष योगदान मानते हैं. ऐसा माना जाता है कि इसके प्रभाव में ही निम्नलिखित पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों ..

  • एक्यूप्रेशर
  • सुजोक एक्यूप्रेशर चिकित्सा
  • एक्यूपंक्चर
  • आध्यात्मिक चिकित्सा
  • जल चिकित्सा
  • प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी)
  • होमियोपैथी और आयुर्वेद
    इत्यादि का प्रभाव लगातार बढ़ा है और लोगों का इन पर विश्वास भी जमा है. यह ज्योतिषीय स्पेक्युलेशन है या इसमें कोई सत्यता भी है, इसकी जाँच पड़ताल अभी तक नहीं हुई है.
    ज्योतिष और आयुर्वेद दोनों के अनुसार रोग भी कर्म जनित ही होते हैं इसलिए अनेक रोगों का इलाज बिना इसे समझे सम्भव नहीं है. मसलन भारतीय ज्योतिष के अनुसार अनेक अदृष्ट रोगों का उद्भव पूर्व जन्म के कर्मों के कारण देवताओं, भूतप्रेतों और पुतना इत्यादि बाल ग्रहों से जनित होता है. वराहमिहिर ने भी पागलपन, उन्मत्तता इत्यादि रोगों का कारण पूर्व जन्म के कर्मों को माना है. उन्होंने कुछ योग बताये हैं जिनके होने से पागलपन और उन्मत्तता इत्यादि होते है, जैसे लग्न में बृहस्पति हो और सप्तम भाव में शनि या मंगल हों, शनि लग्न में हो और मंगल सप्तम, पंचम और नवम में हो, चन्द्रमा-बुध लग्न में हो, निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ द्वादश में हो, कमजोर चन्द्रमा लग्न, अष्टम, पंचम, नवम में क्रूर ग्रह से युत हो, मंदी सप्तम में क्रूर ग्रह के साथ हो और बुध ३,६, ८, १२ में अशुभ प्रभाव में हो तो पागलपन इत्यादि सम्भव है. उन्माद वात के बढ़ जाने से होता है इसलिए वात प्रधान ग्रह शनि, राहु इत्यादि की दृष्टि या युति उन्माद में कारक होती है. इन्हें मन और बुद्धि के कारक ग्रहों बुध और चन्द्रमा तथा लग्न को गहरे प्रभावित करना चाहिए. पाश्चात्य ज्योतिष में युरेनस और प्लूटो को व्यापक पैमाने पर जन उन्माद देने वाला ग्रह माना गया है .
    निम्नलिखित कुंडली को देखें, यह कुंडली एक फ्रेंच विचारक की कुंडली है.
    जन्म तिथि : 18 January 1925
    समय – 02:45
    स्थान -फ़्रांस
    इन्होने 4 november 1995 को अपने फ़्लैट से कूद कर आत्महत्या कर ली थी ..
  • शनि की द्वादशेश बुध पर पूर्ण दृष्टि है, उच्च के प्रबल मारक मंगल की शनि पर पूर्ण दृष्टि है. ४ नवम्बर १९९५ को दशा थी –
    (बुध-शनि-शनि-मंगल ) शनि पंचमेश है और बुध नवमेश है जो इनके पूर्व जन्म के कर्मों के किसी कर्ज को स्पष्ट करता है. इन्होने आत्महत्या से पहले आत्महत्या को जस्टिफाई करने वाला लेख भी लिखा था..बड़े चिंतक दार्शनिक थे.