स्त्री का गर्भाधान जीवन के बावत एक महत्वपूर्ण परिघटना है इसलिए गर्भाधान में चन्द्रमा की निम्नलिखित स्थितियों का ध्यान रखा जाये तो अच्छी सन्तति मिल सकती है। चंद्रमा मातृ कारक होता है इसलिए गर्भाधान मुहूर्त में चन्द्रमा की स्थिति अति महत्वपूर्ण होती है। इन योगों के अनुसार गर्भाधान करने से जातक अनेक मुश्किलों से बच सकता है ।
स्त्री की कुंडली में चन्द्र राशी से अनुपचय ( १ . २ , ४, ५, ७, ८ , ९, १० ) में गोचर वश चन्द्र हो और मंगल से दृष्ट हो तब समय गर्भधारण का उपयुक्त होता है ( चन्द्र ओज राशि में हो (१ , ३ , ५ , ७ , ९, ११ ) ..
लेकिन ये निम्नलिखित दोष न हो उस समय –
१- गंडांत न हो ( अश्लेषा का अंत , मघा का प्रारम्भ , ज्येष्ठा का अंत , मूल का प्रारम्भ और , रेवती का अंत, अश्विनी का प्रारम्भ ), गंडांत में लग्न भी न पड़े ( कर्क का अंत, सिंह का प्रारम्भ , वृश्चिक का अंत , धनु का प्रारम्भ , मीन का अंत , मेष का प्रारम्भ )
२- अपने जन्म नक्षत्र से ७ वां नक्षत्र न हो
३- अपना जन्म नक्षत्र न हो
४-अश्विनी , भरणी , मघा , मूल , रेवती नक्षत्र में लग्न और चन्द्र न हो ( रोहिणी , हस्त , स्वाति , अनुराधा , उत्तराषाढ़ , श्रवण , धनिष्ठा , शतभिषा , उत्तरभाद्रपद में चन्द्र हो तो अच्छा )
५-व्यतिपात , वैधृति , परिघयोग का उत्तरार्ध न पड़े 
६- माता पिता का श्राद्ध दिन न हो
७-जन्म राशि या लग्न राशि से अष्टम राशि का लग्न न हो ( लग्न से केंद्र त्रिकोण में शुभ ग्रह हों , लग्न से तीसरे , छठवे , ग्यारहवें पाप ग्रह हों )
८- लग्न में पाप ग्रह न हो 
९- पाप ग्रह के नक्षत्र में चन्द्र न हो
१०-भद्राकरण न हो
११ -षष्ठी तिथि न हो
१२-चतुर्दशी , अमावस्या , पूर्णिमा की संक्रांति , अष्टमी न हो
१३- रिक्ता तिथि न हो
१४-संध्या का समय न हो
१५-रविवार , मंगलवार , शनिवार न हो
१६-मासिक धर्म की चार रात्रि से पूर्व गर्भाधान न हो
१७ – लग्न में गुरु , शुक्र, बुध कोई हो (ये वशिष्ठ कहे गए हैं ) जो अपनी राशि अथवा शुभ राशि में हो। कुल १६- रात्रि का मासिक धर्म होता है । प्रारम्भ की चार रात्रि निषेक के लिए श्रेष्ठ है। बाद की १२ रात्रि में ( छठी , आठवी , बारहवी , चौदहवी और सोलहवी ) रात्रि पुत्र देने वाली होती हैं।
गर्भाधान में इन बातों का रखेंगे ध्यान तो मिलेगी अच्छी सन्तान, होगा अनेक अशुभ योगों से बचाव
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