गर्गाचार्य के ज्योतिषीय सूत्र संहिताओं में यत्रतत्र बिखरे हुए हैं।  कोई ऐसा आचार्य नहीं जिसने गर्गाचार्य के सूत्रों को उधृत न किया हो।  गर्गाचार्य ने किसी भाव के स्वामी की अष्टम भाव में स्थिति पर जो सूत्र कहे हैं वो कमोवेश अकाट्य ही है।
धनपेचष्टं भावे स्वल्पकलिश्चात्मघातक: पुरुष: ।
उत्पन्नभुग विलासी परहिंसक: सदैव दैव पर: ।।
यदि द्वितियेश अष्टम स्थान में हो तो जातक झगड़ालू तथा अपने ही शरीर पर अघात करने वाला होता है या आत्मघाती या सेल्फ डेस्ट्रक्शन करने वाला होता है। वह अपने ही परिश्रम की कमाई खाने वाला, विलासी होता है। वह दूसरों के प्रति हिंसक और आक्रामक होता है। वह सदैव दैव की दुहाई देता रहता है।
 Hinduism : Ritual, Reason and Beyond - A Journey Through the Evolution of 5000 Year Old Traditions |
इसकी परीक्षा के लिए ये कुंडली देखिये –
जन्म तिथि – ७ अगस्त १९७६
समय -१६:५९ pm
स्थान-जौनपुर

इस महाशय की कुंडली में द्वितीयेश शनि अष्टम में स्थित है।  ये काफी पढ़े लिखे हैं, स्वतंत्र पत्रकारिता से जीविका चलाते हैं लेकिन काफी झगडालू, कलहकारी है और आत्मघाती हैं।  सदैव दैव की दुहाई देते रहते हैं।
गर्गाचार्य के उपरोक्त कथन में दो बातें हैं  – यदि द्वितीयेश कोई शुभ ग्रह है तो अशुभ प्रभाव थोडा कम होगा, यदि द्वितोयेश लग्नेश है और शुभ ग्रह है तो उपरोक्त बातें बहुत नगण्य होंगी, यदि लग्नेश द्वितीयेश भी है या द्वितीयेश पंचमेश हो जैसे वृष लग्न में  बुधहै, वृश्चिक में गुरु है  या द्वितीयेश नवमेश हो जैसा मीन लग्न में मंगल है तो उपरोक्त प्रभाव नगण्य ही होगा।


 
					 
					 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			 
																			