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ॐ जय जगदीश हरे , स्वामी जय जगदीश हरे ।

भक्त जनों के संकट , छिन में दूर करे । टेर ।।

जों ध्यावे फल पावे , दुःख विनसे  मन  का  ।

सुख़ सम्पति घर आवे ,कष्ट मिटे तन का ।।१ ।।

मात पिता  तुम  मेरे  , शरण  गहू  किसकी  ।

तुम बिन और न दूजा ,आश करूं जिसकी ।। २ ।।

तुम   पूरण  परमात्मा ,   तुम    अन्तर्यामी  ।

पार ब्रह्म परमेश्वर  , तुम सबके स्वामी ।। ३ ।।

तुम  करुणा  के  सागर , तुम  पालन  कर्ता ।

मैं मुर्ख  खल कामी , कृपा करो  भर्ता  ।। ४ ।।

तुम  हो  एक  अगोचर  , सब के प्राणपति ।

किस विधि मिलु दयामय , तुमको मैं कुमति ।। ५ ।।

दीनबन्धु   दुःख  हर्ता ,  तुम  रक्षक  मेरे  ।

अपने हाथ  बढ़ाओ , द्वार  पड़ा  तेरे ।। ६ ।।

विषय  विकार  मिटाओ , पाप  हरो  देवा ।

श्रद्धा भक्ति बढाओ , सन्तन की सेवा ।। ७ ।

जगदीश हरे जी की आरती , जों कोई नर गावे ।

“ धरणी “पर सुख़ पाके , भव से तिर जावे ।। ८ ।